अनोखे दीपक
सुधा भार्गव
"अरे सिट्टू कल दीवाली है। सबके चेहरे गुलाब की तरह खिले हैं और तू -तू इतना उदास ?तेरी माँ ने डांट पिला दी है क्या ? कर रहा होगा कोई शैतानी।वह भी क्या करे ! है भी तो तू एक नंबर का उधमबाज ।"
"ओह दादू !न जाने क्या बोलते जा रहे हो । मेरी तो सुनो।"
"मेरा सिट्टू तो आज बड़ा सीरिअस है। चल बता तेरे दिमाग में क्या तूफान उठ रहा है?"
"दादू इस बार दीवाली कैसे मनाऊँगा । माँ ने चीनी लाईट खरीदने को मना कर दिया है और पापा --उन्होंने तो वह झालर भी कूड़ेदान में फेंक दी जो पिछले साल खुद ही बड़े शौक से खरीदकर लाये थे। न जाने उनको अचानक क्या हो गया है।"
"बेटा ,दीवाली पर दूसरे देश की बनी लाइट ,झालर,पटाखे हम खूब खरीदते हैं। इससे हमारा पैसा विदेशों में चला जाता है । इसे तो रोकना होगा।
"पर बिना उनके दीवाली की रौनक तो गई। "
"कैसे चली गई। फुलझड़ी ,झालर हमारे देश में भी तो बनती हैं। उनको खरीदकर घर का पैसा घर में ही रहेगा।अपने देश के बने मिट्टी के दिये जलाकर अंधेरे को भागा देंगे ।एकदम स्वदेशी दीवाली मनेगी स्वदेशी दीवाली। टन टनाटन टन दीयों की बारात सजी होगी । उसमें शामिल होने को लक्ष्मी जी भी भागी चली आएगी।" दादू भी सिट्टू के साथ दूसरे सिट्टू लगने लगे।
"हमारे घर में भी ---। तब तो हम मालमाल हो जाएँगे। पर बिजली की लाइट तो बहुत रोशनी देती है। उतनी रोशनी करने के लिए तो हजारों दिये चाहिए । इतने दीये आएंगे कहाँ से दादू। ''
"हूँ --बात तो तुम्हारी ठीक है। इस वर्ष तो हजारों दीपक की माँग होगी। अरे वो देखो मनमौजी कुम्हार आ रहा है । चलो इसी से पूछते हैं।"
दादू और सिट्टू को देखते ही मनमौजी गदगद हो उठा । बोला---"भैया हमारे तो दिन फिर गए। लो मुंह मीठा करो। शुद्ध घी के हैं। घरवाली ने बनाए हैं। इस बार तो हजारों दीये बनाने पड़ेंगे । दो जगह से हजार -हजार के दो ऑर्डर भी मिल गए । चमत्कार हो गया। लक्ष्मी की किरपा समझ लो।"
"हाँ मनमौजी अब तो हर दीवाली पर तुम खुशकिस्मती का दिया जलाओगे। तुम्हारे कारण ही हम भी स्वदेशी दीवाली धूमधाम से माना पाएंगे । मेरे पोते को तो विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि बिना विदेशी पटाखों और दीयों के दिवाली भी मन सकती है।"
"मनमौजी काका लाखों दीये कैसे बनाओगे? दो दिन बाद ही तो दीवाली है।मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है। दीये नहीं मिले तो हमारी दीवाली भी गोल ही समझो। "परेशान सा सिट्टू बोला।
"अरे बिटुआ हमने तो दो माह पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है । देखते जाओ हम मिट्टी के ऐसे सुंदर- सुंदर दीये बनाएँगे कि मन ललच ललच जाएगा। मैं तो सोच रहा हूँ इस बार मिट्टी के साथ गोबर मिलाकर दीये बनाऊँ।"
"छीं छीं --गोबर की बदबू ही बदबू फैल जाएगी। कौन खरीदने आयेगा ?मेरा तो सुनते ही जी मिचला रहा है।"सिट्टू ने नाक कसकर बंद कर ली।
"वह तो मैंने तुम्हें बता दिया वरना बनने के बाद तो पता ही नहीं चलता कि गोबर के बने हैं। इससे मिट्टी की बचत भी हो जाएगी और दीवाली के बाद ये खाद बनाने के काम आ जाएँगे। इनको गमलों में या किचिन गार्डन में डाल सकते हैं।"
"अरे वाह ये तो जादू के दीये हो गए। तब तो मैं अपने कमरे से बाहर रखे गुलाब -चमेली के गमले में दीये रख दूंगा। उनके जादू से गुलाब बड़े बड़े हो जाएँगे। "सिट्टू एकाएक चहक उठा।
"यह तो मनमौजी तुमने पते की बात कही। न किसी तरह की गंदगी न प्रदूषण । गोबर के दीये तो एक तरह से इकोफ्रेंडली हुये। पर तुम इन्हें बनाओगे कैसे। तुम्हारा बेटा तो काम में हाथ बँटाना ही नहीं चाहता।"
"अरे बाबू हम बोले न !हमारे तो भाग जग गए। अब तो मेरा सारा परिवार इसमें लग गया है। सबके दिमाग में नई नई बातें उमड़ घुमड़ रही हैं। सुरगू की तो क्या कहूँ !कहाँ उसे मिट्टी छूने से चिढ़ थी और अब शहर न जाने की कसम खा ली है । एक दिन बोला- -बापू तेरे साथ रहकर अपने दादा-परदादा के धंधे को आगे बढ़ाऊंगा।
"हमारे लिए तो गोबर के दीये नई बात है। हमने तो कभी सुना नहीं!"दादू बोले।
"जरूरत पड़ने पर तरकीब अपने आप ही जन्म ले लेवे हैं। हमारे पास गोबर का पहाड़ है पर उसकी कीमत कभी समझी ही नहीं। "
"काका गोबर से दीपक बनाते कैसे हो?जल्दी बताओ। फिर मैं अपने दोस्तों को बताकर उन्हें हैरान कर दूंगा।"सिट्टू बहुत कुछ जानने को उतावला था।
"अरे बड़ा सरल है बनाना बच्चे । सूखे गोबर को पहले महीन पीस लेवे हैं। फिर उसमें मिट्टी मिलाकर गूँथना पड़े हैं। मेरी दोनों बिटियाँ तो छोटे छोटे हाथों से बड़े अच्छे दिये बनावे हैं। बनाती चली जाएंगी --बनाती चली जाएंगी। थकती भी नहीं। ऐसा जुनून छाया हुआ है सब पर दीपक बनाने का। 2-3 दिनों तक धूप में सूखने के बाद तुम्हारी काकी बहुत से रंगों से उनपर चित्रकारी कर देती है।
मैं तो गोबर में कपूर भी थोड़ी सी डाल दूँ हूँ जिससे हवा खुशबू से भर जाये।"
"पहले के दीयों से गोबर के दीये तो एकदम अलग है।हीरो है हीरो ।क्यों दादू ठीक कह रहा हूँ न !"
"इसकी एक बड़ी खासियत है । यह तेल नहीं सोखता दूसरे जलते समय इसमें घी और कपूर की खुशबू भी आती है। "मनमौजी बोला।
"अरे वाह !यह नया दीया तो कमाल का है! जब मैं छोटा था दीवाली पर बहुत सारे मिट्टी के दिये खरीदे जाते थे। पहले पानी में कई घंटों के लिए डूबा देते थे। फिर हम भाई बहन उन्हें निकाल एक पेपर पर फैला देते या धूप में रख देते। माँ कहा करती ऐसा करने से दीये ज्यादा तेल नहीं पीते। गोबर के दीये से तो तेल भी बच गया और पानी में भिगोने का झंझट भी खतम । ऐसे नए नए विचार तुम्हें कब से सूझने लगे !"दद्दू उत्साहित से बोले।
'पहले कभी दिमाग में आया ही नहीं बाबू कि लोग बदल रहे हैं समय बदल रहा है ।लोगों की पसंद बदल रही है । उसके अनुसार अपने काम करने के तरीके में में बदलाब लाना चाहिए। उठने की तो कोशिश की नहीं ,अपना काम छोटा है हम छोटे हैं यह सोचकर अपने को अपनी ही आँखों में गिरने लगे। आत्मनिर्भर भारत की पुकार से हम जाग गए । नतीजा आपके सामने है।"
"मनमौजी ,दीपक रोशनी ही नहीं करता बल्कि हमारे अंदर के अंधकार को भी मिटाता है। सच्चे अर्थों में तो इस दीवाली पर तुमने ही दीपक जलाया है।" मनमौजी अपनी तारीफ सुनकर फूला न समाया ।
"काका अब तो मेरा दोस्त कक्कू भी दीवाली मना लेगा । मैं अभी उसे जाकर बताता हूँ कि गोबर के दीये कम तेल पीते हैं। बड़ा खुश होगा। उसकी माँ के पास बहुत कम पैसे रहते हैं न । वह ज्यादा तेल नहीं खरीद पाती।"
"अरे बेटा दीवाली के समय खाली हाथ न जा। ये ले दस गोबर के दीये । उसे मेरी तरफ से दे दीजो।"
मनमौजी तुमने गोबर से दीये बनाकर जैसे बड़ा काम किया है वैसे ही तुम्हारा दिल भी बड़ा है। मेरे लिए भी 100 दीये रख देना । लो ये रुपए एडवांस में।"
"अरे बाबू इतनी जल्दी क्यों?। बाद में ले लूँगा।"
"न मनमौजी !आई लक्ष्मी वापस नहीं करते ।मुस्कुरा कर उसने रुपए ले लिए।"
मनमौजी का अंग अंग खुशी से गुनगुना रहा था। उसका सारा परिवार बड़े उत्साह से अनोखे दीये बनाने में जुट गया।
समाप्त
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