प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

बाल कहानी

बिखरते सँवरते  रंग /सुधा भार्गव

(स्कूलों में गृहकार्य ही बोझिल नहीं हो गया है बल्कि नित नए प्रोजेक्ट तैयार करना , पाठ से संबन्धित आकर्षक चार्ट बनाना भी अपने आप में एक समस्या का रूप लेता जा रहा हैं । इसको ध्यान में रखते हुए एक सकारात्मक सोच के साथ यह कहानी लिखी गई है। और खुशी है कि देवपुत्र बाल मासिक पत्रिका अंक जुलाई -2014 में इसको प्रकाशित किया है। )




गुल्लू के छोटे छोटे हाथ बड़े चंचल थे। तितली की तरह झूमते हुए चाहे जहां रंग –बिरंगे फूल बनाकर उसे प्यार से सहलाने लगते। माँ ने उसके लिए पोस्टर कलर रंगीन पेंसिलें और मोटी सी ड्राइंग बुक खरीद दी थी। उसके बनाये ,पेड़ ,चन्दा मामा ,चिड़ियाँ झांक झांक कर उससे बतियाते और गुल्लू की नीली –नीली आँखें खुशी से चमकने लगतीं ।

वह शाला जाने लगा पर जैसे ही समय मिलता उसकी उँगलियाँ पेंसिल लेकर छोटे –छोटे कागजों पर नाचना शुरू कर देतीं और सुंदर सा कोई चित्र बनाकर ही दम लेतीं।उसकी शिक्षिका जिन्हें सब बच्चे कला दीदी कहा करते थे उनको लेकर कक्षा में बोर्ड पर टाँकने लगतीं। सबसे कहतीं-देखो यह चित्र गुल्लू ने बनाया है। इससे दूसरे बच्चे भी अच्छी ड्राइंग करने की कोशिश करते ।
गुल्लू जब चौथी कक्षा में पहुंचा तो उसकी यह कला अपनी दीदी की पारखी आँखों से छिपी न रह सकी। वे बड़े स्नेह से बोली –गुल्लू ,हमें तुम सबको एक नया पाठ पढ़ाना है लेकिन उससे पहले उसके बारे में एक चार्ट बनाना होगा। क्या तुम घर से बना कर ला सकते हो ?
-हाँ दीदी ! गुल्लू ने झट से कह दिया क्योंकि वह सोचा करता उसकी माँ तो सब कर सकती है ।

माँ ने भी यह सोचकर चार्ट बना दिया कि इस बहाने दीदी उसके बेटे से खुश रहेंगी और उसका ध्यान रखेंगी । अगले दिन गुल्लू चार्ट शाला ले गया । दीदी ने उसकी तारीफ की तो उसे बड़ा अच्छा लगा । पर यह क्या अगले महीने फिर एक चार्ट उसे बनाने  को कह दिया गया और यह सिलसिला चलता ही रहा ।
कुछ माह बाद गुल्लू के घर में एक छोटी सी बहन आ गई । इससे माँ का काम बढ़ गया।
उस दिन गुल्लू चार्ट बनाने के लिए लाया । माँ ने कहा –बेटा ,तुम बनाने की कोशिश करो मुझे तुम्हारी बहन को दूध पिलाना है ।
-ओह माँ !मेरे से अच्छा नहीं बनेगा ।
-तुम बनाओ तो –फिर मैं तो हूँ तुम्हारी मदद को ।
गुल्लू जोश में आ गया और कुछ चार्ट उसने बनाया और कुछ माँ ने । शाला जाकर  चार्ट उसने दीदी जी को दे दिया । पर जैसे ही उन्होंने देखा बुरा सा मुंह बनाया और एक किनारे रख दिया । गुल्लू का  कोमल हृदय घायल हो गया । सारे दिन दीदी उससे नहीं बोली । उस दिन उसका मन पढ़ने में भी न लगा ।

घर जाते ही वह सुबक पड़ा –माँ –माँ मैं स्कूल नहीं जाऊंगा । दीदी जी मुझसे गुस्सा है ।
-अच्छे बच्चे ऐसा नहीं कहते । कल हम तुम्हारे साथ शाला जाएंगे और दीदी जी को मना लेंगे ।
शाला में घुसते ही उनका सामना प्राचार्या अर्थात बच्चों की बड़े दीदी से हो गया। वे चौंकते हुए बोलीं –अरे गुल्लू अपनी माँ के साथ आए हो !शाला बस से नहीं आए।  तुम्हारी तबियत तो ठीक है ?
-दीदी , यह तो आज आना ही नहीं चाहता था ।
-क्या बात है गुल्लू –हम खराब हैं या शाला खराब है ।
-मेरा चित्र खराब है ।
-तो लाओ ,उसे अच्छा कर देते हैं ।
-बड़ी दीदी , माँ का बना चार्ट कला दीदी को पसंद आता था पर मैं माँ की तरह नहीं बना सकता । वे मुझसे गुस्सा हो गई है । जब से मेरी छोटी बहन आई है मेरा सारा काम बिगाड़ दिया । हमेशा माँ को अपने काम बताती रहती है । माँ भी थक जाती है । पर मैं दीदी को कैसे खुश करूँ।
उसकी भोली बातों पर मैडम हंस पड़ी और बोलीं –चलो हमारे साथ –तुम्हारी दीदी  जी को खुश करते हैं और अपनी माँ को जाने दो । तुम्हारी बहन वहाँ अकेली है ।
 -हाँ माँ तुम जाओ । मेरी तरफ से भी उसे प्यार कर देना ।

गुल्लू के साथ बड़ी दीदी उसकी क्लास में पहुंची । कक्षा बहुत स्वच्छ और करीने से लगी हुई थी । एक चार्ट की ओर इशारा करते हुए बड़ी दीदी ने कहा –वाह !बहुत सुंदर !यह किसने बनाया है ।
-बड़ी दीदी जी ये मेरे ड्राइंग सर ने बनाया है जो घर पर आते हैं । एक छात्र बोल उठा ।
-और यह दूसरा भी कमाल का है ।
-यह तो बहुत बड़े चित्रकार ने बनाया है और इसके बदले उन्होंने पूरे 200 रुपए लिए।  दूसरा छात्र बोला।
बड़ी दीदी चकित थीं और कला दीदी के दिमाग में छा गया सन्नाटा।
-मैंने तो  कभी सोचा भी न था  कि चार्ट के कारण ऐसे –ऐसे रंग देखने पड़ेंगे  ,इससे तो अच्छा था मैं ही बना लेती। दीदी  के स्वर में पछतावा था ।
-तुमने ठीक कहा ,मगर 4-5 बच्चों का समूह बना कर कक्षा में ही  बारी –बारी से उनसे सहायता ले सकती हो । यह कहकर बड़ी दीदी मुस्कराती हुई वहाँ से चल दीं।
 
कला दीदी ने समूह में गुल्लू का नाम भी रखा। यह जानकर वह तो उछल पड़ा –आह !दीदी जी,अब आप मुझसे गुस्सा तो नहीं।
कला दीदी एक मिनट तो उसकी बात नहीं समझीं फिर अचानक उन्हें अपना वह व्यवहार याद आया जो चार्ट पसंद न आने पर उन्होंने उसके साथ किया था । वे अंदर ही अंदर शर्मिंदा हो उठीं और उसका हाथ अपने हाथ में लेती हुई बोलीं –गुल्लू हम किसी से गुस्सा नहीं होते हैं ,सबको प्यार करते हैं ।
-मुझको भी !
-हाँ तुमको भी ।
 दीदी  के उमड़ते अनुराग को अनुभव कर गुल्लू का उदास चेहरा अनोखी चमक से झिलमिला उठा और शाला के कार्यों में बड़े उत्साह से भाग लेने लगा ।


गुरुवार, 12 जून 2014

लोककथा


गुस्सैल सँपेरा /सुधा भार्गव 

यह कथा शबरी शिक्षा समाचार जून 2014,वर्ष 16,अंक 06 में 
प्रकाशित हो चुकी  है । 


एक सँपेरा  था । वह साँप का तमाशा दिखाया करता । उसने एक बंदर भी पाल रखा था जो तमाशे के बीच नाचता ,सीटी बजाता और सलाम करके सबसे पैसे लेता। 
एक बार शहर में  पाँच दिनों का बड़ा सा मेला लगने वाला था । सँपेरा साँप की पिटारी लेकर बीन बजाता नगर की ओर चल दिया और बंदर को अपने मित्र के पास छोड़ दिया । मित्र बंदर का बहुत ध्यान रखता । पहले उसको खाने को देता फिर खुद खाता।

-इतना ध्यान तो मेरा सँपेरा भी नहीं रखता है ,मुझे भी इसके लिए कुछ करना चाहिए।
 यह सोचकर बंदर भी बगीचे से आम तोड़कर उसके लिए लाने लगा।

पांचवें दिन सँपेरा मेले से लौटा । उसने तमाशा दिखाकर काफी धन कमा लिया था पर थका –थका सा था । उसने मित्र का धन्यवाद किया और बंदर को लेकर बाग में थोड़ा आराम करने के लिए चल दिया । बंदर को भूख लगी और उसने सँपेरे से खाने को मांगा । झुंझलाकर सँपेरे ने डंडी से उसकी पिटाई कर दी । दुबारा खाने को मांगा तो रस्सी से उसे बांध दिया और सो गया। बंदर ने किसी तरह मुंह से रस्सी की गांठें खोली और अपने को आजाद किया।  वह उछलकर आम के पेड़ पर जा बैठा और रसीले आम खाने लगा।

सँपेरे की  आँख खुली तो उसने बंदर को अकेले –अकेले आम खाते देखा । वह समझ गया कि बंदर उससे गुस्सा है क्योंकि रोज तो वह एक खाता था तो दूसरा उसके लिए नीचे गिरा देता था।   
उसने बहलाने की गरज से कहा –बंदर बाबू तुम बहुत सुंदर  हो और जब गुस्सा होकर गाल फुलाते हो तो और भी सुंदर लगते हो।

-बस ज्यादा चापलूसी न कर। कभी किसी ने बंदर को सुंदर कहा है ?मेले में जाकर दो पैसे क्या कमा लिए तुझे तो घमंड होगया और मुझ पर हाथ उठा दिया । तूने मुझ भूखे को मारा ---क्या कभी भूल सकता हूँ । अब न मैं तुझे आम दूंगा और न तुझ जैसे  गुस्सैल और मतलबी से  दोस्ती रखूँगा।

शांत न रहने से सँपेरा अपना धीरज खो बैठा और अपनी मदद करने वाले मित्र को भी खो दिया।  

सोमवार, 19 मई 2014

लोककथा


अनोखी मित्रता 
यह शिक्षाप्रद बालोपयोगी लोककथा शबरी शिक्षा समाचार पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। 



राजा के पास एक हाथी था । जिसका नाम मंगलू था | वह बहुत शक्तिशाली था।  उसे खाने को अच्छी किस्म के चावल दिए जाते।जिस स्थान पर हाथी चावल खाया करता वहाँ कुछ चावल गिर जाया करते। उस समय एक कुत्ता हाथीशाला में  कर उन्हें  खा लेता । उसका यह रोज का नियम था। उसी सॆ वह अपना गुजारा करता।
उसकी हाथी  से अच्छी खासी दोस्ती हो गयी । दोनों ज़रा भी अलग -अलग नहीं रह सकते थे।कुत्ते को देखकर हाथी उसे सूढ़ से बार –बार छूता और कुत्ता भी हाथी की सूढ़ को इधर –उधर कर उससे खेलता। उसे प्यार से चाटता ।  
एक दिन गाँव से एक आदमी आया ।उसे कुत्ता बहुत अच्छा लगा।  वह हाथीवान को अच्छी -खासी कीमत देकर कुत्ते को अपने साथ ले गया
कुत्ते के बिना हाथी इतना दुखी हुआ कि  उसने खाना -पीना ,-नहाना सब छोड़ दिया । लोगों ने राजा को इसकी खबर दी । राजा ने तुरंत अपने मंत्री को बुलाया और कहा – मंत्री जी ,हाथी ने  खाना -पीना छोड़ दिया है इससे तो वह कमजोर हो जाएगा । जरा इसका कारण  तो पता कीजिये ।
मंत्री ने हाथी की अच्छी तरह जांच –पड़ताल की । उन्हें उसके शरीर में कोई बीमारी न दिखाई दी
उन्होंने हाथीवानों से पूछा – हाथी किसी को प्यार करता था क्या ?इससे इसका कोई प्रिय तो नहीं बिछुड़ गया ?कहीं उसी के गम में दुखी हो।
-हाँ मालिक !इसकी एक कुत्ते से बहुत दोस्ती थी ।घंटों खेला करते थे। कुछ दिनों पहले  उसे एक आदमी ले गया है । 
मंत्री ने राजा के पास जाकर कह दिया -महाराज !हाथी अपने दोस्त कुत्ते से बिछुड़ जाने के कारण बहुत दुखी है। इसी से सब कुछ त्याग  बैठा है। राज्य में घोषणा करवा दीजिए कि जिसके घर में हाथी का मित्र कुत्ता पाया जाएगा उसे राजदंड मिलेगा ।
राजा ने ऐसा ही किया । इस समाचार को सुनकर ले जाने वाले आदमी ने कुत्ते को छोड़ दिया।  कुत्ता दौड़ता हुआ आया और हाथी से चिपट गया । हाथी ने उसे सूढ़  से उठाकर माथे पर बिठा लिया।उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। माथे से कुत्ते को उतारकर पहले उसने सूढ़ से दोस्त को खाना खिलाया ,बाद में खुद ने खाया ।

 जिन्होंने भी उनकी इस दोस्ती और प्यार को  देखा  चकित हो गए और मन ही मन निश्चय किया कि वे भी अपनी दोस्ती हमेशा निभाएंगे।  

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

कक्षा -कथा

विद्या भवन सोसायटी उदयपुर और आजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय का संयुक्त प्रकाशन हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका खोजें और जानें में 20 जनवरी 2014 अंक 8 में मेरे लेख का एक अंश व्यथा शीर्षक से प्रकाशित हुआ है जिसका संबंध एक विकलांग बच्चे से है। यह कहानी मेरे शिक्षण काल के अनुभवों पर आधारित है। 



बुधवार, 15 जनवरी 2014

बालकहानी


सोने की कढ़ी


एक लोहार था । वह घर जा -जा कर चाकू छुरी और दराँती पर धार रखा करता। जिस चाकू की धार पैनी करता वह बड़ी कुशलता से महीनों सब्जी -फल काटा करता। एक दिन वह भरी दोपहरी में आवाज लगा रहा था धार रखवा लो धार ---तलवार से भी तगड़ी धार।

एक युवती ने उसे पुकारा। छुरी वाला बोला मजदूरी के अलावा जितने छुरी चाकू पर धार रखवाओगी उस हिसाब से उतनी ज्यादा रोटियाँ मुझे खिलानी पड़ेंगी। रोटी छोटी बड़ी हो सकती हैं पर सब्जी कटोरा भरकर होनी चाहिए।

 युवती ने हँसकर अपनी गर्दन हिला दी। उसने चार चाकुओं पर धार रखवाई और उसके अनुसार मजदूरी उसकी हथेली पर रख दी। इसके साथ ही एक थाली में चार रोटियाँ और कटोरे में कढ़ी रखकर उसके आगे खिसकाई।

खाते समय उसने पूछा यह पीली -पीली सब्जी क्या है? बड़ी जायकेदार है।
-इसका नाम कढ़ी है ।




-इसमें गोल गोल गोले कैसे हैं ?
-ये सोने की पकौड़ियाँ हैं।
-तब तो कल आकर भी खाऊँगा । घर के और सारे चाकू छुरियाँ निकाल कर रखना ।
-घर में तो नहीं हैं ।
-तो क्या हुआ! पड़ोस की ले लेना । कुछ सस्ते में धार रख दूंगा ।

दूसरे दिन लोहार ठीक खाने के समय युवती के घर आन धमका। 2-3 छुरियों पर धार रखने के बाद मजदूरी तो मिल गई मगर थाली में केवल रोटियाँ देख बिदक पड़ा कढ़ी तो है ही नहीं ---रोटी कैसे खाऊँ ?
-सोना खतम हो गया ,कढ़ी की पकौड़ियाँ  कैसे बनाती ?
-ओह !सोना बहुत लगता है क्या ?
-लगता तो थोड़ा ही है। युवती ने सिर खुजलाते हुए कहा ।
-अच्छा ,मैं घर में खोजूंगा। शायद कुछ हाथ लग जाये ।

अगले दिन वह बहुत खुश था। उसके हाथ  में सोने की एक बाली थी। जब वह चाकुओं पर धार देने गया तो रास्ते में युवती का घर पड़ा ।
एक मिनट वहाँ रुका और बोला लो यह बाली । इससे जल्दी से कढ़ी बना दो और हाँ !2-3 दिनों तक इससे काम चलाना। बस मैं अभी आया ।

उस रोज युवती ने खूब सारी कढ़ी बनाई। लोहार ने जी भर कर खाई ।
चलते चलते बोला मेरी बीबी को भी दो रोटियों के साथ कढ़ी दे दे। वह भी खाकर खुश हो जायेगी।
कढ़ी खाने वाले भी खुश और कढ़ी बनाने वाली भी । अब तो हर तीसरे चौथे दिन चोरी छुपे लोहार पत्नी का गहना उठाकर युवती को सौंप देता और वह उसे लेकर तिजौरी में रख देती।अब तो उसके कब्जे में दोनों बालियाँ थीं।  

कान की बालियाँ 
एक दिन युवती ने फिर कढ़ी नहीं बनाई और बिगड़ते हुए बोली -सोना तो खतम हो गया फिर कैसे बनाती ?
लोहार इस बार नीला पीला  हो उठा और चिल्लाकर बोला मेरे लाए सोने से तुमने कढ़ी बनाई। तुमने खाई ,तुम्हारे घर वाले और बच्चों ने भी खाई होगी। एक दिन तुम अपने सोने से कढ़ी नहीं बना सकती थी ?

उसकी चिल्लाहट सुनकर पास पड़ोस के लोग वहाँ आकर जमा हो गए और लोहार की बात सुनकर हंस पड़े ।
-तुम लोग खी खी करके दाँत क्यों निकाल रहे हो ?लोहार और भी झल्ला उठा ।

एक देहाती मसखरी करता हुआ बोला अभी तक तूने सोने की कढ़ी खाई है मैं तुझे लोहे की खीर खिलाऊंगा। कढ़ी से भी ज्यादा जायकेदार ।
-लोहे की खीर ! क्यों मुझे उल्लू बनाता है । लोहे से बर्तन औज़ार तो मैंने बनाए हैं पर खीर ! कभी नहीं !अगर तूने खीर बना भी दी तो लोहे को चबाएगा कौन ?
-तूने जब सोने की पकौड़ियाँ चबा ली तो लोहे के दाने भी चबा सकता है ।

लोहार को झटका सा लगा और सिर पकड़कर बैठ गया।
 वह बड़बड़ाया ---मुझ सा मूर्ख भी भला होगा कोई दुनिया में। सोना और लोहा तो मौसेरे भाई हैं । दोनों ही दांतों से नहीं चबाए जा सकते। यह छोटी सी बात मेरी समझ में न आई।  
लेकिन कुछ ही देर में हिम्मत जुटाकर उठ खड़ा हुआ और सीना तान कर बोला -
-अब मेरी  बारी है । देखना लोहे की तरह पीट पीटकर इस चालबाज औरत से अपना सोना न निकलवा लिया तो मैं लोहार नहीं ।

इतने में उसका पति आ गया । भेद खुल जाने के डर से युवती काँपने लगी । उसे देखते ही लोहार बोला साहब आपकी पत्नी ने मुझे लूट लिया और मैं मूर्ख ,जीभ का गुलाम इसकी बातों में आ गया ।इससे कहिए मेरे सोने के जेवर वापस कर दे।


सोने के जेवर
सारी बात जानने के बाद वह अपनी पत्नी की करतूत पर शर्मिंदा हो उठा । युवती समझ गई कि उसका पति ज्वालामुखी की तरह किसी भी समय फट सकता है। उससे अपना बचाब करने के लिए वह भागी हुई कमरे में गई और आकर पति के हाथों में सोने की चैन ,बालियाँ  और अंगूठी थमा दीं ।
पति लोहार को गहने लौटाते हुए बोला -भाई ,आगे से जरा सावधान रहना । इस दुनिया में तो उल्लू बनाने वाले बहुत से मिल जाएँगे ।  


-चित्र गूगल से साभार

यह कहानी द्वीप लहरी बालसाहित्य रचना अंक जनवरी -जुलाई (हिन्दी साहित्य कला परिषद पोर्ट ब्लेयर का प्रकाशन )पेज 30 पर प्रकाशित हो चुकी है।

नववर्ष 2014 मुबारक हो ।

नए साल का उपहार /सुधा भार्गव

जापानी गुड़िया

उसका गुड़िया प्रेम कुछ निराला ही हैं । सात पूत की माँ और दर्जन भर पोते पोतियों की दादी –नानी माँ बन गई है पर गुड़िया उससे छूटी नहीं । बचपन में उसकी पिटारी कागज,काठ और कपड़े की बनी गुड़ियों से भरी रहती । उठाओ तो बड़ी भारी,खोलो तो कबाड़ा । उसकी शादी के समय पिताश्री ने सोचा –इसके लिए कुछ नई गुड़ियाँ मँगा दी जाएँ वरना यह कबाड़ा ही अपने साथ ले जाएगी। सो राजा टोंयज छाप कंपनी की छोटी –बड़ी,मोटी –पतली पाँच –छ्ह गुड़ियाँ मंगा दीं। मगर इतने से उसकी तृप्ति कहाँ! कलकत्ते ससुराल जाते ही  जाते ही बंगाली वर –बधु खरीद लिए।


 कुछ समय बाद घर में एक जीती -जागती गुड़िया आ गई। सारा समय वह उसका ले लेती पर शोकेस में सजाई गुड़ियों को निहारना न भूलती। बेटी ससुराल गई,बेटे बड़े हो गए तो बाहर घूमना क्या शुरू हुआ घर में गुड़ियों की आबादीबढ्ने लगी। योरोप से 2-3 डॉल खरीद लाई। कनाडा पोती

 के होने में गई तो वहाँ से भी बोलती-चलती-फिरती गुड़िया खरीदना न भूली। उसके इस जुनून 

को सब जानते थे। टोकाटाकी भी न करते। जानते थे रोकने से वह रुकेगी नहीं।

घर में पोती आई तो उसे कलेजे से लगा बैठी। उसे बहुत बरसों बाद जीती-जागती सुंदर सी गुड़िया मिली थी। पोती पर भी दादी की छाप पड़ गई। उसके लिए भी वह नीली –नीली आँखों वाला ,गोरा –चिट्टा गुड्डा खरीद लाई जो देखने में 6 माह का लगता था। पोती तो उससे भी दो कदम आगे 

निकली। मजाल है कोई उसे छू ले। कोई बच्चा घर में आता तो उसे छुपा देती। जब वह अपने

 मम्मी –पापा के साथ लंदन उड़ी तो गुड्डा उसकी गोद में बैठा था। पोती के जाने की बाद दादी माँ टूट सी गई। हाँ, फोन पर बातें करके ,लैपटोंप में स्काईपी पर उसे देखकर अपना कलेजा जरूर ठंडा कर लेती।
दो साल पहले बेटा जापान जाने लगा। पूछा –माँ ,आपके लिए क्या लाऊं ?
-बेटा वहाँ से जापानी डॉल लाना –बड़ी सी। बच्ची की तरह बोली।
  
-ठीक है आपके लिए ले आऊँगा।

-पहले अपने लिए लाओ ।फिर मेरे लिए लाना। जानती थी उसकी पोती को भी डॉल का बहुत शौक है। 
पिछले साल वह लंदन गई। ड्राइंग रूम  में घुसते ही आनंदित हो उठी –अरे वाह !कितनी सुंदर है!

 उसकी निगाह कोने में अटक –अटक जाती । बेटा उन निगाहों को पहचान गया। बोला-

-इस गुड़िया को भारत अपने साथ ले जाना।

--न –न । अगली बार मेरे लिए दूसरी ले आना।
2013 नवंबर में उसे मालूम हुआ ,बेटा जापान जाने वाला है।
फोन खटखटाने में देरी न की –मेरे लिए जापानी गुड़िया जरूर ले आना और हाँ, मिले बहुत दिन हो गए हैं। अगर दिसंबर में आओ तो गुड़िया यहाँ लाना न भूलना।

भाग्य से 28 दिसंबर को बेटा दो रातों को भारत आ गया और माँ के लिए नए साल का

 तोहफा लाना न भूला। उसे देखकर वह उस डॉल की यादों में डूब गई जो उससे बहुत दूर है। नए 

वर्ष 2014 में जो भी मिलने आता है वह उसे जापानी गुड़िया दिखाना नहीं भूलती है और कहती है –

ठीक ऐसी ही जीती-जागती, दौड़ती -भागती  गुड़िया लंदन में भी रहती है ।  

गुड़िया 

समाप्त


बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

शुभ दीवाली --घर -घर जन्मो राम




दीपमणियों की जगमगाहट से भरपूर दीवाली सबको बहुत

शुभ हो।


 इस अवसर पर गणेश पूजन और लक्ष्मी पूजन मंगल कारी और  सुख का झरना बहाने वाला  होता है । इसलिए बहुत  मन लगाकर बच्चों  पूजा करनी है । 
  अब हम तुम्हें एक  कहानी भी  सुनाते हैं जो बड़ी दिलचस्प और जानकारी से भरपूर है ।  


बालकहानी

घर -घर जन्मो राम /सुधा भार्गव

रामा और लाखा दो भाई थे ।उनकी माँ बहुत सोच समझकर घर चलाती थी । न खुद पैसा बेकार की चीजों को खरीदने में नष्ट करती थे और न बच्चों को करने देती थी । उनको रोज एक -एक टॉफी  देती थी  ।लाखा का एक टॉफी से जी  नहीं भरता । रामा अपने भाई को बहुत प्यार करता था ।उससे उसकी ललचाई निगाहें  नहीं देखी जातीं इसलिए अपने हिस्से की टॉफी   उसके लिए बचा कर रख देता ।

दिवाली के दिन भी भाईयों को 20 -20 रुपए के फुलझड़ी और पटाखे मिले । रामा ने कुछ फुलझड़ी और एक बम पटाखा अपने भाई के लिए रख दिया  ।




शाम होते  ही वे घर के पिछवाड़े ,मैदान में जा पहुंचे । अंधेरा होते ही लाखा ने फुलझड़ी छुटानी शुरू कर दी ।

 जल्दी ही खिसियाते बोला –
-भैया ,फुलझड़ी तो खत्म हो गई ।
-ले मेरी भी छुटा ले । रामा बोला ।

उस समय तक  उनके पड़ोस में रहने वाले बच्चे अलटू-पलटू भी आन धमके थे  । वे ऊंची हवेली के रहने वाले थैला भरकर पटाखे लाये । 
उनकी बात सुनकर पलटू ज़ोर से हंसा –
-अरे दो-चार पटाखों से क्या होता है । ये देख-- मेरे पटाखे !झोला भरकर हैं । अब होगा इनका तमाशा –बिन पैसे का तमाशा ।



पलटू ने एक पटाखे में दियासलाई से आग लगाई और ज़ोर से हवा में उछालकर रामा की ओर फेंका । वह तो बाल –बाल बच गया वरना बुरी तरह झुलस जाता ।
-देखा –पटाखे के साथ साथ तुम भी कैसे उछल रहे हो ,बड़ा मजा आरहा है । 
एक जलती      



बमलड़ी उसने नाजुक से पिल्ले पर फेंक दी जो सड़क के किनारे बैठा था । वह जख्मी हो गया और बिलबिलाता वहाँ से भागा ।
अलटू भी फुदकने लगा –वाह भैया वाह !क्या निशाना मारा  है !
रामा को पलटू की यह बात अच्छी न लगी ।
-तुमने पिल्ले को जलाकर ठीक नहीं किया । उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था ।
-जले तो जले ...मेरा क्या जाता है । और भी कोई जलेगा तो बड़ा आनंद आयेगा  ----फिरकनी की तरह घूमेगा वह तो।


रामा ने उस बिगडैले हाथी से झगड़ा मोल लेना ठीक न समझा। लाखा का हाथ पकड़ते हुए बोला –
-भैया ,यहाँ से चलो , ऐसे दुष्टों के साथ रहना ठीक  नहीं ।ऐसे ही लोगों के कारण झोपड़े जलकर राख़ हो जाते हैं और बेचारे गरीब की दिवाली आंसुओं में डूब जाती है।    


-कहाँ जा रहे हो ?मैं जाने दूँ तब न –कहकर पलटू ने पटाखा इस प्रकार उछाला कि ठीक रामा –लाखा के सामने जाकर पड़ा ।

लाखा जलते –जलते बचा । उसके साहस को देखकर रामा  हक्का–बक्का रह गया । उसे गुस्सा भी ज़ोर से आया । उसने झपटकर पलटू से झोला छीन लिया और पास के तालाब में फेंक दिया ।
पलटू उसे मारने दौड़ा ।
-खबरदार जो हाथ उठाया । हम किसी से झगड़ा नहीं करते लेकिन हमारा कोई नुकसान करे यह हम सह नहीं सकते । अपना बचाब भी करना जानते हैं । तुम्हारे पटाखे से मेरा भाई जल जाता तो ...... । मैं अपने भाई की रक्षा करना खूब  जानता हूँ ।
पलटू का पहला मौका था जो इस तरह से उससे बातें हुईं वरना सब साथी उससे डरते थे । वह बेमन से एक के बाद एक पटाखे छोड़ने लगा ।

-अरे सब खत्म कर दोगे ---मुझे भी तो दो । उसका छोटा भाई अलटू चिल्लाया ।
-मैं तुम्हें एक भी नहीं दूंगा । ज्यादा चिल्लाया तो अभी पटकियाँ खिला दूंगा ।



दोनों बम की तरह बम -बम कर रहे थे । 
रामा –लाखा दोनों को झगड़ता छोड़ अपने घर चल दिये । दीवाली –पूजन का समय  भी हो गया था ।

ज़्यादातर घर नई दुल्हन की तरह सजे थे । पर रामा का घर मोमबत्तियों से सजा था । 


थाली में रखी  रूई की बत्तियाँ तेल में भीगी मंद –मंद हँसती रोशनी दे रही थीं ।दीपों को देखते  ही लाखा उन्हें जलाकर रखने लगा । 




 पलटू का भवन लाल नीले ,पीले बिजली के लट्टुओं से सजा अलग ही छ्टा दिखा रहा था । अचानक बिजली चली गई । पलटू का घर अंधकार में डूब गया लेकिन दीयों -मोमबत्तियों वाला घर सूरज जैसी चमकीली रोशनी से भरा हँस रहा  था ।

-माँ !माँ दीपों की माला कितनी सुंदर लग रही है। लाखा प्रसन्न हो तालियाँ बजाने लगा।
--हाँ बेटा !असली दीवाली यही है । चौदह वर्ष के बनवास के बाद जब राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो वहाँ के रहने वालों ने जगह –जगह दीपक जला कर खुशियाँ  व्यक्त की ।


सीता -राम -लक्ष्मण
 बिजली के लट्टुओं का जन्म तो बहुत बाद में हुआ ।

-ये राम कौन थे ?रामा ने पूछा । 
-राम !अपने माँ-बाप  की बात बहुत मानते थे ।छोटोंको प्यार करते थे ।रावण जैसे  बुरे लोगों से अच्छे लोगों को बचाते थे ।
-माँ,आज मैंने भी अपने भाई को बचाया ।
-तू मेरा राम ही तो है । माँ का प्यार उमड़ पड़ा जिसका धन ये दो पुत्र ही थे ।
-मगर माँ ,पलटू बहुत बुरा है ।
-बेटा बुरे को बुरा कहने से बुराई का अंत नहीं होता । तुम लोगों के साथ रहकर वह जरूर अच्छा हो जाएगा ।अपने अच्छे बर्ताव से उसका दिल बदल दो ।

उन्होंने बड़े प्रेम से गणेश –लक्ष्मी की पूजा की ,राम सीता और उनके छोटे भाई लक्ष्मण के आगे सिर झुकाया और प्रार्थना शुरू की -- 


  
विनती सुन लो  हे रघुराई
दुष्टों ने बड़ी धूम मचाई
घर में रोती अच्छाई
बाहर मुसका रही बुराई।
  
इसे मार भगाना है
इससे हमें बचाना है
हमको खूब पढ़ा दो राम
शक्ति हम में भर दो राम ।

बड़े –बड़े हम काम करेंगे
रावण को नहीं जीने देंगे
दुनिया में हम यश पाएंगे
 पर तुम्हें  नहीं भुलाएंगे,

जय बोलो ,ज़ोर से  बोलो
जय –जय  भगवान की ।

प्रार्थना के स्वरों और घंटी की आवाज से हवा में एक संगीत सा घुल गया । 
अलटू-पलटू अपने घर के अंधकार को चीरते हुए रामा और लाखा के घर की ओर खिंचे चले आए । प्रार्थना खतम होने के बाद रामा –लाखा ने जब पलटकर देखा तो चकित हो गए -पड़ोसी भाई  हाथ जोड़े खड़े थे ।लगता था वे अपने बुरे व्यवहार की क्षमा मांग रहे हों । प्रसन्न हो रामा ने पलटू को और लाखा ने अलटू को गले लगा लिया ।
सच में बुराई पर अच्छाई की जीत हो गई।