दादी क़ा पीपा
वात्सल्य की मिठास उड़ेलती हुई मनोरंजन से भरपूर बालकहानी
वात्सल्य की मिठास उड़ेलती हुई मनोरंजन से भरपूर बालकहानी
छंदालाल और बिंदामल की दोस्ती बचपन से ही
चली आ रही थी। दोनों ने ही फौज में भर्ती होने की ठान ली तो ठान ली। दोनों की माँ
लाख गिड्गिड़ईं,बाप ने लाल पीली आँखें
दिखाईं पर फौजी बन कर ही रहे। रिटायर हुए तो साथ साथ पर उसके बाद
छंदालाल शहर में बस गया और बिंदामल अपनी माँ के साथ गाँव में रहने लगा।
बिंदा ने शादी नहीं की थी लेकिन बच्चों में उसकी जान बसती थी। इसलिए
बीच-बीच में अपने दोस्त से मिलने शहर आता और उसके बच्चों पर छप्पर फाड़ ढेर सा
प्यार बरसा के लौट जाता।
एक बार छंदा के घर आते समय बिंदा माँ को भी साथ ले गया। माँ ने कभी
गाँव से बाहर पैर रखा नहीं था फिर शहरी हवा से मुलाक़ात कैसे
होती!
गर्मी के दिन थे। दो मंज़िला सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते बूढ़ी माँ पसीने से लथपथ
हो गई। दरवाजे पर ही छ्ंदा की पत्नी ने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और ड्राइंग
रूम में बैठाया। एक मिनट उन्होंने इधर –उधर नजर दौड़ाई फिर खुश होते हुए बोलीं-बहू ,यह तूने अच्छा किया ,मुझे बरफखाने में बैठा
दिया। मेरी तो सारी
थकान ही
मिट गई।
-माँ जी यहाँ कमरे को ठंडा करने वाली मशीन मतलब ए. सी. चल रहा है।
-अरे बहू ,मैं क्या जानूँ अई. सी. वै. सी. मैं जब बहुत छोटी थी अपने बापू के साथ बरफखाने गई।
वहाँ तो घुसते ही बड़ी ठंड लगने लगी।चारों तरफ बरफ की सिल्लियाँ ही सिल्लियाँ पड़ी
थीं। उससे यह तेरा बरफखाना अच्छा है। एक बात बता,तूने बरफ कहाँ रख छोड़ी है?
-दादी माँ,वह तो पिघल गई और उसका पानी नाली से बाहर बह गया।नटखट नयन हाथ नचाते हुए बोला।
सबने चुप रहने में ही भलाई समझी क्योंकि दादी ने
उसकी बात पर विश्वास कर लिया था।
नयन की बड़ी बहन परी पानी के 3 गिलास एक ट्रे
में रखकर लाई। दादी ने गटागट तीनों गिलास खाली कर दिए और बोलीं – पानी तो बड़ा मीठा और ठंडा
हैं। लल्ली,एक गिलास पानी और ला,नियत न भरी।
बहन ने जैसे ही फ्रिज खोला,उसकी तरफ इशारा करते हुए
दादी ने पूछा-बेटी,यह क्या है?
-पानी ठंडा करने की मशीन हैं. इसे हम रेफ्रीज़रेटर कहते हैं।
- बड़ा लंबा- चौड़ा नाम है इस का तो।
मुझसे तो बोला भी न जाए।
थोड़ी देर में सब खाने बैठे। दादी बोलीं-बेटी, गिलास से मेरी ये प्यास न बुझे। मुझे तो उस पीपे
से लोटा भर पानी दे दे। वरना बार-बार तुझे पीपा खोलने उठना पड़ेगा।
पहले तो परी पीपा का मतलब समझी नहीं और जब समझी तो
हंसी के उड़ते गुब्बारों को पकड़ न सकी।
बड़ों की बात पर इस तरह हँसना माँ को जंचा
नहीं और उन्होंने उसे गुस्से से घूरा। लेकिन हंसने का रोग तो ऐसा फैला कि
नयन की बत्तीसी भी खिल उठी।
पेटपूजा होते ही सबकी आँखों से मीठी- मीठी नींद
झाँकने लगी। दादी माँ तो सोफे पर ही पसर गईं। गुदगुदे डनलप के सोफे पर उन्हें बहुत
आनंद आ रहा था।
बोलीं- मैं तो भैया, न बरफखाना छोड़ने वाली और न
रेशम से ऐसे बिछौने को। झपकी यहीं ले लेती हूँ। तुम लोग जहां चाहो जाओ।
-माँ जी दूसरे कमरे में भी ए॰ सी॰ है। आप वहाँ
आराम से सो जाइए।
-क्या कहा?यहाँ दूसरा भी बरफखाना है। आह क्या मजा! चल बहू,जल्दी बता कमरा । पाँच बजे
तक पैर पसारके सोऊँगी। और हाँ,शाम की रोटी मैं बना दूँगी। तू चिंता न करियो। फूल सी बहू इस जानलेवा
गर्मी में कैसी झुलस गई है।
80 वर्ष की उम्र में भी इतना उल्लास व फुर्तीलापन
देखकर पूरा परिवार चकित था।
चार बजते ही दादी माँ की नींद टूट गई। मिचमिचाती
आँखों को खोलते हुए कड़क आवाज में बोलीं-बिटिया, जरा पीपे में से पानी दे जा
और हाँ चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ा दे। मैं बस अभी आई।
कुछ ही देर में वे रसोई की तरफ बढ़ गईं। गैस के
चूल्हे पर पानी उबलने रख दिया था। उन्होंने वैसा चूल्हा कभी देखा नहीं था। चकित सी गाल पर हाथ
रखते हुए बोलीं-अय दइया,यहाँ तो भट्टी में से आग की बड़ी -बड़ी लपटें निकल रही हैं। मिट्टी का
चूल्हा तो कहीं नजर नहीं आता।
नयन की माँ फुर्ती से कमरे से निकल कर आईं।
वे डर गई थीं कि दादी बिना सोचे -समझे गैस के चूल्हे की टटोलबाजी न करने लगें।
-माँ जी ,यह गैस का चूल्हा है ।
इसमें लकड़ी-कोयला जलाने का खटराग नहीं और सफाई भी रहती है।
-यह तो जादुई चूल्हा है। लगे, मुझे तो बार बार यहाँ आना पड़ेगा।
-बार बार आने-जाने का झंझट क्यों करो माँ ,यही रह जाओ। उनका बेटा बिंदा बोला।
-मेरे गाँव के घर का क्या होगा?मेरे खेत ,मेरे बैल? –न न बेटा ,गाँव तो मेरे खून में रच-बस गया है। वहीं की पैदाइश ,वहीं पली और ब्याही भी गाँव में । छोडने की बात से तो मेरा कलेजा
फटने लगे है। दो दिन को कहीं चले जाओ
पर आखिर में तो अपना घर ही प्यारा लगे है।
बिंदा में अब इतना साहस न बचा कि पुन; माँ से शहर में रहने का आग्रह कर सके। एक हफ्ते
में ही दादी माँ सबसे बहुत हिलमिल गई।उनके विनोदी स्वभाव से सब उनकी ओर खिचें चले
आते थे।
गाँव जाने के एक दिन पहले बड़ी उदास हो गईं।
बिंदा के दोस्त से बोली-बेटा छ्न्दा,सबको लेकर गाँव जरूर आना।
तुम्हें कोई परेशानी न होगी। वहाँ भी पीपा और बरफखाना है।
दादी के इस धमाके से नयन के कान खड़े हो गए।
-क्या दादी –तुम्हारे घर में फ्रिज जैसा पीपा है।
-हाँ हाँ—मैंने कहाँ न, है। बड़ा गहरा पीपा है ।
उसका ही हम ठंडा-मीठा पानी हलक से नीचे उतारे हैं।
बिंदा गहरी सोच में पड़ गया कि माँ किस पीपे की बात
कर रही है। अचानक उसके मुंह से निकला-माँ ,कुएं की बात कर रही हो?
-हाँ हाँ ।गाँव का कुआँ क्या पीपे से किसी बात में
कम है।
जोरदार हंसी का हुल्लड़ मच उठा।
-इसमें हंसने की ऐसी क्या बात है । वहाँ तो
बरफखाना भी है।
-बरफखाना— सबके मुंह खुले रह गए।
-अचरज कैसा ?घर के आगे चौरस आँगन में नीम का बड़ा सा पेड़ है। उसके तले ऐसी ठंडी
दिलखुश हवा के झोंके लगे है कि शहरी बरफखाना तो उसके आगे भूल ही जाओगे।
-दिन तो कट गया पर दादी रात में गर्मी में कैसे
सोना होगा? परी ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
-रात की चिंता न कर बिटिया! कमरे की खिड़कियाँ तो
हम सारी रात खुली रखे है।ऐसी ठंडी हवा घुसे है कि चादर ताननी पड़े ।
इस बार चुलबुला नयन सरल हृदया और स्नेही दादी के बरफखाने पर हंस न
सका। उसको बूढ़ी दादी में अपनी दादी नजर आने लगी। वह पुलकित हो उनसे चिपट
गया-दादी कोई न आए ,मैं छुट्टियों में तुम्हारे पास जरूर आऊँगा।
-अरे केवल तेरी दादी हैं क्या?मेरी भी तो दादी हैं। मैं
भी आऊँगी दादी और तुम्हारे चूल्हे की रोटी खाऊँगी। परी इठलाती बोली।
--रे छ्ंदा,तू कैसे चुपचाप खड़ा है।भूल गया जब तू छोटा था तो मेरे हाथ का बना
सूजी-बेसन का बना हलुआ कितने शौक से खाता था।
-माँजी मुझे अच्छे से याद है। मैं भी आपके हाथ का
हलुआ खाने आ रहा हूँ।
-आजा आजा। कुछ दिनों को बहू भी चूल्हा –चक्की से छुट्टी पाएगी।
दादी का चेहरा चमक उठा। वह तो प्यारे प्यारे
पोता-पोती को पाकर निहाल हो गई जिनके लिए न जाने कब से तरस रही थी।
अगले दिन सुबह ही दादी अपने बेटे के साथ गाँव चली
गईं पर जाते जाते छंदा के परिवार मेँ अपने वात्सल्य की मिठास घोल गईं।
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