7-कृष्णोत्सव
नन्हें-मुन्नों ,आज जन्माष्टमी है । कुछ ही देर में बालगोपाल (कृष्ण)का जन्म हो जाएगा। हम उनके इंतजार में आँखें बिछाए बैठे है।जैसे तुम अपना जन्मदिन केक काटकर मनाने लगे हो उसी तरह उनके जन्मदिवस को हर्षोल्लास के साथ मनाने के लिए घर -घर हलुआ, पूरी ,खीर ,पूरी -कचौड़ी पहले से ही बन चुके हैं। पहले उनका भोग लगेगा फिर घर के लोग खाएँगे। इस मौके पर मुझे एक कहानी याद आ रही है --नाम ?हाँ ,नाम है
मीठी खीर
सारंगी की दादी ने 80 वर्ष पार कर लिए थे। छड़ी के
सहारे ठक -ठक करती धीरे- धीरे चलती थीं। आज जैसे ही वह घर में घुसा अपनी दादी को
रसोई में खड़ा देख उछल पड़ा-
-मेरी प्यारी दादी तुम रसोई में ,आह आज तो तुम्हारे हाथ का समोसा खाने को मिलेगा । कितने दिन हो गए
तुम्हारे हाथ का खाए हुए।
-अरे क्यों तंग करता है माजी को । समोसा बाजार से आ
जाएगा।
-ओह माँ !कैसे बताऊँ तुम्हें। दादी के हाथ के बने
खाने का स्वाद ही कुछ दूसरा है।एक की जगह दो खा जाता हूँ।
-अरे बहू ,काहे को मेरे
पोते का मन छोटा करने में लगी हो। अभी तो मुझमें इतनी शक्ति है कि उसे दो समोसे
बना सकूँ।
-अच्छा दादी समोसा फिर कभी---। बहुत थकी थकी लग रही
हो। बस यह बता दो आज क्या बनाया है।
-अरे सारंगी,आज तो खीर
बनाई है वह भी किशमिश डालकर। चाटता ही रह
जाएगा।
-तो देरी किस बात की है। मुझे दे दो न मीठी खीर भरा
कटोरा ।
-तुझे अभी नहीं मिलेगी। आज जन्माष्टमी है। बालगोपाल
का जन्मदिन। हजारों वर्ष पहले रात के बारह बजे उनका जन्म हुआ था। उनकी याद में तब से
लोग अब तक जन्मदिवस मनाते चले आए हैं। पहले
उनको खीर चटाई जाएगी फिर कोई दूसरा खा
सकता है। माँ के माथे पर बल पड़ गए।
-बाप रे इतने साल से उनकी वर्षगांठ मनाते हैं। कोई उन्हें
भूला नहीं।
-माना वे बहुत नटखट थे पर तब भी सबके प्यारे थे। अपनी मीठी बातों से माँ यशोदा और दोस्तों का मन मोह लेते थे। यही नहीं बड़े
होने पर उन्होंने सबकी सहायता की और बुरे काम करने वाले दुष्टों से लोगों को बचाया।
ऐसे लोगों को कोई भूला जाता है।
-पर रात के बारह बजे –तब तक तो मैं सो भी जाऊंगा। दादी
माँ तुम ही कुछ करो न।
-बहू, क्यों तरसा रही
है मेरे सारंगी को। मेरा बाल गोपाल तो यही है। ऐसा कर ,तू अपने
गोपाल की खीर एक कटोरी में पहले निकाल ले तब मेरा कन्हैया खा लेगा।
तभी दरवाजा भड़भड़ा उठा। सारंगी की माँ ने दरवाजा खोला। फटे-पुराने कपड़े पहने एक बच्चे को खड़ा देख हड़बड़ा उठी -- तू कहाँ से आ गया! कृष्ण की पूजा तो हुई नहीं!उससे पहले तुझे खाने को कैसे दे दूँ।
दादी माँ
तो बुरी तरह भड़क उठी- काम न धाम --आज के दिन भी मुंह उठाए भीख मांगने चला आया। आग
लगे ऐसे पेट को।
-माई ,मैं भिखारी नहीं। यह
आधा गिलास दूध और थोड़े से चावल है। मेरी खीर बना दे।
-घर में क्या काम कम है जो तेरी खीर बनाने बैठूँ। सुबह से काम करते कमर टूट गई।भाग जा
यहाँ से।
- माई तेरे हाथ जोड़ूँ । मेरी माँ ने भी व्रत कर रखा है पर गिर जाने से उससे उठा भी न
जा रहा। माई मेरी, खीर बना दे --। वह भी तो बिना भोग लगाए कुछ न खा सके।
-एक बार कहा न खीर नहीं बन सकती। बहरा है क्या। माँ
शेरनी की तरह दहाड़ी।
बच्चा उदास होकर पेड़ के नीचे जा बैठा। सारंगी को
माँ और दादी की बात अच्छी न लगी।
लड़के के जाते ही सारंगी का दिमाग बड़ी तेजी से काम करने लगा और चहका –अरे दादी माँ ,मुझे खीर तो दो। भूख के मारे मेरा तो पेट एकदम पिचक गया।
उसकी पुकार सुन दादी माँ अपने को रोक न सकी और अपने
लाडले को खीर का भरा
कटोरा थमा दिया।
वह माँ-दादी की आंखों से बचता -बचाता उस बच्चे के
पास जा पहुंचा जो पेड़ के नीचे बैठा हुआ था।
उसने पूछा -
-तुम्हारा नाम क्या है?
-माँ मुझे प्यार से कबीरा कहती है।
-लाओ मैं तुम्हारी खीर बना देता हूँ।
-तुम ,तुम खीर कैसे बना
सकते हो? खीर
तो चूल्हे पर बनती हैं।
-जादू से चुटकी
में बना दूंगा। पहले चावल की कटोरी और गिलास दो। फिर दिखाता हूँ अपना जादू।
-सच में तुम जादू
से मेरी खीर बना दोगे। हैरत भरी निगाहों से
कबीरा उसे ताकने लगा।
-हाँ कह रहा हूँ
न,बना दूंगा। मैं तुमसे बड़ा हूँ इसलिए
तुमसे बहुत कुछ ज्यादा जानता हूँ।
कबीरा की आँखें
चमक उठीं और उसने कटोरी सारंगी को दे दी।
सारंगी ने फुर्ती से
चावलों के ऊपर दूध डाला और बोला -
- अब अपनी आँखें
मींचो।जब तक मैं नहीं बोलूँ तब तक नहीं खोलना। तुम्हारी आँखें बंद होते ही मेरा
जादू शुरू हो जाएगा।
भोले कबीरा ने
कसकर आँखें बंद कर ली। साथ ही छोटे -छोटे हाथों से उन्हें ढाप लिया। सारंगी ने उसके
दूध से लथपथ चावलों को छिपा दिया और अपना जादू शुरू कर किया -
धूमधड़ा ---धूमधड़ा
मेरा जादू धूम
धड़ा
छूं-छूं --काली मंतर
धूँ-धूँ ---देवी जंतर
धड़-धड़ाधड़ -पड़पड़
मीठी-मीठी खीर बना
कुछ मिनट बाद ही सारंगी
बड़े प्यार से बोला-
कबीरा आँखें
खोलो। मेरा जादू चल गया ,खीर कटोरा भर गया।
कबीरा ने फटाक से
आँखें खोल दीं ।वह तो उछल पड़ा –आह खीर बन
गई –मीठी खीर बन गई। पर---पर --मेरी कटोरी कहाँ गई?
-कटोरी का कटोरा
बन गया और दूध –चावल से खीर बन गई। यही तो मेरा जादू है।
- आह,अब मेरी माँ भूखी नहीं रहेगी और
उसके बाल गोपाल भी भूखे नहीं रहेंगे।
कबीरा की आँखों
से खुशी के आँसू टप-टप टपकने लगे।
दादी को तो बिना सारंगी
के एक मिनट चैन न पड़ता था। आस-पास उसे न देख बेचैन हो उठी। आवाज देते- देते दरवाजे
तक लाठी टेकती आन पहुंची। बूढ़ी सास को अकेला जाते देख सारंगी की माँ भी साथ हो ली। उन्होंने दूर खड़े दोनों बच्चों को बतियाते देखा। कबीरा के
हाथ में कटोरा देख तो वे ठगी सी रह गईं।
सारंगी की माँ ने
चुप्पी तोड़ते हुए कहा-
-माँ जी कुछ देख
रही हो ?
-बहू, ये बूढ़ी आँखेँ सब देख रही हैं।
एक दुखिया को खुशी देकर हमारे घर के कन्हैया ने तो सच्चे अर्थों में जन्माष्टमी मनाई
है।
-हाँ माँ जी,आपने ठीक कहा। हम बड़े, समझदार होते हुए भी नासमझ है और ये छोटे, नासमझ
होते हुए भी हम से ज्यादा समझदार निकल गए।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-08-2016) को "नाम कृष्ण का" (चर्चा अंक-2447) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'