पोती के वैवाहिक समारोह के सुनहरे पल व
उसके प्रति दादी के उद्गार ***
मेरी गुड़िया की शादी
16 जनवरी,2024 को मेरी पोती अनुष्का व चिरंजीवी श्रेयस विवाह के अटूट बंधन में बंध चुके हैं। यह वैवाहिक समारोह देवी रत्न होटल जयपुर में सम्पन्न हुआ।
लगता है कल की ही बात है ....जब वह राजकुमारी सी
आंखों में समाई
होठों से मुस्कुराती
छोड़कर जाने लगी
पैरों के निशान
दिल की दहलीज पर।
रिश्ते में बंध गया था प्यार
तारों भरी नगरी को लगा
निकल आए हैं दो चांद।
मेरे सामने बैठी थी दुल्हन ---
पिता का नूर ,मां की जान
उनका मान उनका अभिमान
भरे नयन चेहरे पर मुस्कान ।
वह तो है ----
सरगम की पुकार
घुंघरूओं की झंकार
लहराती नृत्य करती
एक खूबसूरत कलाकार ।
जिस नन्ही सी जान को
गोदी में झुलाया
प्यार से गले लगाया
एक दिन बोली -
अम्मा,आप उसी तरह से मेरे लिए भी लिखोगी ना जैसे दीदी की शादी में लिखा था।
उसने तो बड़े सहज भाव से कह दिया। लेकिन मेरे तो आंसुओं की झड़ी लग गई।दिल में कचोट सी हुई शायद वह दूर जा रही है।लेकिन जो दिल की गलियों में उतर जाते हैं वे दूर कहाँ होते हैं!
लिखना तो था ही। लिखने बैठी … शब्द ही नहीं मिले।जैसे -तैसे लिखती आंसू टपक पड़ता…. शब्द मिट जाता। कागज का पन्ना कोरा का कोरा ।अब मैं उससे कैसे कहती जिसे जितना प्यार किया जाता है उसे व्यक्त करने के लिए उतने ही कम शब्द मिलते हैं।
यादों की गलियों से गुजरने लगी … मम्मी घर की डोर सँभाले थी , पापा अपना भविष्य बुन रहे थे।वह गुलाब की पंखुरी सी मेरी जिंदगी में समा गई। आंखें चलाती भौं चढ़ाती.बात करती …. ! भोली मूरत पर आंखें अटक -अटक जातीं । जरा सा चेहरा मुरझाया देखती तो इसकी मम्मी के पीछे पड़ जाती, तुम उस पर ध्यान नहीं देती ।वह भूखी है ।किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ जिससे इसकी सेहत बन जाय। अब तो सोच कर हंसी आती है भला कौन मां बच्चे का ध्यान नहीं रखती।लेकिन भावनाओं की भीड़ में मजबूर थी ।
दिखाई नहीं देती तो मेरी आँखें ढूँढने लगतीं । पता लगा कमरे में गुड़ियों के बीच एक और गुड़िया खड़ी है। लिपस्टिक काजल थोप ,नकली चुटैया लगाये , सिर पर दुपट्टा ओढ़े शीशे के सामने खड़ी मटक रही है । हंसते हंसते लोटपोट हो जातीं .।
मुझे भी गुड़ियों का बड़ा शौक । बस हो गया उसके साथ गुड़िया का खेल शुरू। लेकिन उस समय मेरी गुड़िया कोई और ही थी। अपनी इस नन्ही को कहानियां बना -बनाकर सुनाती, खेलती ,उसके मन की बात सुनती। वह भी तो अपना दिल खोलकर रख देती। असल में चुक्की(अनुष्का) के बालमन की गहराई में उतरने के बाद ही मुझमें एक कहानीकार का जन्म हुआ और बच्चों के लिए कहानी लिखने की शुरुआत हुई। अंगूठाचूस व एक कमी है -कहानियां इस संदर्भ में विशेष है।
इसकी गुड़ियों की नगरी में कुछ दिन बाद एक गुड्डा भी आ गया बड़ा खूबसूरत । वह बात बिल्कुल नहीं करता था पर आँखें बोलती थीं। चुक्की को तो ऐसा भाया कि मजाल कोई उसे छू तो ले। यह ‘गुड़ियों की नगरी, ही मेरे बाल उपन्यास ‘बुलबुल की नगरी’ की आधार शिला है।
लंदन गई तो वहां भी गुड्डा इसके साथ । अरे अब तो वह गुड्डा छूट गया है , उसकी जगह तो प्रिय श्रेयस ने ले ली है। एक दिल में दो तो रह नहीं सकते!
विश्वास है मेरी नन्ही सी गुड़िया चहकती रहेगी महकती रहेगी और दूसरों को महकाती रहेगी। जब याद करूंगी दौड़ी- दौड़ी आएगी वरना विदेश में बैठी वाट्सएप पर ही बोल उठेगी 'अम्मा' !मैं तो तब भी निहाल हो जाऊँगी।
दादी माँ
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