प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

सोमवार, 6 मई 2024

बालकहानी प्रतियोगिता


बालप्रहरी /बालसाहित्य संस्थान अल्मोड़ा उत्तराखंड 2024

उदय किरौला जी बालप्रहरी पत्रिका के संपादक है। बालसाहित्य संस्थान के सचिव हैं। 

समस्त विजयी कहानीकारों को बहुत -बहुत बधाई। 

प्रतियोगिता में भेजी मेरी कहानी

पानी बरसा छमछम 

  कछुआ गाँव  में बहुत से तालाब थे। उसमें कछुए आराम से  रहते। कभी पानी में तैरते  तो कभी सड़क पर रेंगते । बच्चों को देखकर  तो  आँखें बंद कर  अपना सिर ही छिपा लेते। उनकी इस आँख मिचौनी में बच्चों को  बड़ा मज़ा आता।

   मीनू और चीकू इसी गाँव में  रहते  थे। एक बार  वहाँ   बहुत समय तक पानी नहीं बरसा। जमीन सूख गई, पेड़-पौधे मुरझा गए, तालाबों का पानी सूखने लगा। कछुए परेशान ! मीनू - चीकू उनके दुख में दुखी।  वे अक्सर आसमान की ओर हाथ जोड़कर खड़े हो जाते। कहते-बादल भैया आओ –पानी बरसाओ।“  आखिर बादल  भैया का दिल पिघल ही गया। वह अपना घर छोड़कर आकाश से उतर आया।   बादल भैया आ गए –गोरे  भैया आ गए …कहते हुए दोनों ने उसे घेर  लिया। 

    “भैया!खाली हाथ आए हो! पानी नहीं लाए!हमारे गांव में सूखा पड़ा है। सब कुछ सूख रहा है। हमारे कछुए  भी बिना पानी के सूख जाएंगे।चीकू रूआँसा हो गया।

    "अच्छे बच्चे रोते नहीं । कोशिश करो तो तुम भी पानी बरसा सकते हो।हमेशा मेरा इंतजार करो!यह ठीक नहीं। "

 "क्या नई -नई बात कर रहे हो!पानी तो तुम्हारे अंदर भरा है।  हम कैसे बरसा  सकते हैं?

    "मेरा  भरोसा  तो करो ! लेकिन सबसे  पहले तुम्हें बड़ा सा  तालाब बनाना पड़ेगा।  उसे  पानी से भी भरना होगा। फिर तो  मैं ऐसा जादू चलाऊँगा कि धड़ -धड़ पानी बरस पड़ेगा।“

    “हा!हा! तब तो  उसमें हम छमाछम नाचेंगे।दोनों भाई  खिल उठे। ।  

   “लेकिन  तालाब कैसे बनायेंगे ?हमें तो आता  ही नहीं। मीनू का मुँह लटक गया। 

    “ओह मैं भी कैसा पागल हूँ!तुम छोटे- छोटे हाथों से कैसे बनाओगे ?अब तो गाँव वालों से कहना पड़ेगा।” 

   मीनू - चीकू एक साथ चिल्ला उठे -  “बापू आओ,दद्दू- काकू आओ — गोरा भैया बुला  रहा  है।“ 

   “यह गोरा भैया कौन आ गया!उत्सुकता से  सब दौड़े चले आये। बादल को देखकर उनमें पानी बरसने की आशा जाग उठी। गोरा बादल के   कहने पर उन्होंने तालाब के लिए एक जगह चुनी ।उस जगह की  मिट्टी को खड़ -खड़ खोदना शुरू कर दिया।  तालाब के किनारे को मजबूत करने के लिए ईंटों को भी लगा दिया।  तालाब बनकर तैयार !फिर तो गांववालों ने एक-एक बाल्टी पानी लेकर उसमें  डालना शुरू कर दिया।कई दिनों तक बड़े उत्साह से पानी डालते रहे।  आखिरकार, तालाब भर ही गया।

   “अब बदलू भैया जल्दी से यह पानी बादलों में भर दो।वरना बूंदों से पानी इधर उधर छिटक जाएगा। ”  

    “अरे -रे, तालाब के पानी में तो  छोटी-छोटी बूंदें  बहुत सारी  हैं। लो सूरज महाराज भी आ गए। जैसे ही इनकी  रोशनी  बूंदों पर पड़ेगी , ये  गर्म होकर बढ़ जाएंगी। बढ़ने से  बूंदें एक-दूसरे से मिल जाएंगी ।“

    “हूं, जगह कम पड़ जाएगी ना !तब तो एक दूसरे से उन्हें चिपटना ही पड़ेगा। रात में जब मैं अपनी मम्मी के पास सोता हूं तो जगह कम होने से उनसे चिपक जाता हूं।“

    “लगता है चीकू --तुम अपनी मम्मी को बहुत प्यार करते हो। ये बूंदें भी बड़े प्यार से चिपकती हैं। लेकिन ऐसा होने पर वे  बड़े-बड़े बादलों में बदल जाती हैं।

   “ओह, फिर तो बादलों में पानी ही पानी होगा  । लेकिन उसे लेकर ये उड़ न जाएँ!

   “उड़ कर जाएंगे कहाँ! पानी तो बरसाना ही पड़ेगा।गोरा विश्वास से बोला।

   गांव वाले भी  गोरा की बात सुनकर आश्चर्य के झूले में झूलने लगे।तभी गोरा ने  तालाब के पानी में नमक छिड़क दिया। 

   “अरे यह क्या किया! पानी तो नमकीन  हो गया।चीकू के दद्दा बोले।

   “ यही तो मैं चाहता हूं।  नमक पानी की  बूंदों को एक साथ चिपकने में खूब मदद करेगा ।इससे   बादल और भी ज्यादा घने और भारी हो जाएँगे।” 

   “हूँ…! बादल भारी होने से तो वे  मोटी बूँदों की पिचकारी छोड़ने लगेंगे।” 

   “ठीक कहा चीकू । ये पानी की बूंदें अभी जमीन पर बारिश के रूप में गिरने लगेंगी।”  

   “लेकिन बारिश तो नहीं हो रही।

   “थोड़ा समय तो दो भाई। यह कृत्रिम बारिश है।

    “आह!फिर तो तालाब  बनाकर हम खुद ही पानी बरसा लेंगे। ना हम प्यासे  रहेंगे ना हमारी धरती।खुशी से गाँववालों के  पैर जमीन पर पड़ते ही न थे। 

    जैसे ही बादलों ने पानी बरसाना शुरू किया, कुछ  चुलबुले बच्चे नहाने बाहर निकल पड़े। कुछ ने तो चुल्लू भर -भर  पानी पीना शुरू कर दिया। गोरा घबरा उठा,"नहीं--नहीं !ऐसा न करो!कभी -कभी बारिश के पानी में धूल और छोटे छोटे कीड़े होते हैं ।इसे पीया तो ज़रूर बीमार पड़ जाओगे।“ 

    " समझ नहीं आता क्या करें। पियो तो मुसीबत ना पियो तो मुसीबत ।दद्दा  बोले।  

    “बारिश के पानी को  उबालने से सारे कीटाणु मर-मरा  जाएंगे।फिर मजे से पीओ।“

    “अरे वाह क्या तरकीब बताई है। मान  गए गोरा !हो तो तुम बुद्धिमान !”  

    गाँववालों ने उसकी जमकर तारीफ की।वह  कछुआ गांव में सुख की  बारिश करता हुआ  शीघ्र  ही उनकी आँखों से ओझल हो गया।

समाप्त 

 

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