प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

शुभ कामनाओं सहित कहानी


प्यारे बच्चों


मुझे मालूम है तुम्हें आजकल परीक्षा का भूत बहुत सता रहा है । कुछ दिनों की ही तो बात है, फिर तो वह  भाग  जाएगा। तुम तो इस समय सारा मन किताबों में लगा लो। सफलता तुम्हारे कदम अवश्य चूमेगी । मेरी हार्दिक शुभकामनायें !   और हाँ --समय मिलने पर  नई कहानी जरूर पढ़ लेना ।मन भी बहल जाएगा और कुछ सीख भी मिलेगी ।


पहले काम फिर नाम


एक प्यारा सा बच्चा था चीकू । उसके घर में जानवरों से सबको प्यार था । उसके पापा ने तो एक बड़ा सा डोगी 
पाल रखा था । जिसका छोटा सा नटखट बच्चा था डिग्गू ।
एक दिन वे अपने मित्रके यहाँ से बिल्ली का बच्चा उठा लाये ।चीकू तो उसे देख उछल पड़ा -आह कितना सुंदर है !भूरी -भूरी आँखें, रुई सा सफेद ,मक्खन सा चिक -चिक चिकना !
-पापा ,इसे तो मैं स्कूल ले जाऊंगा ।
स्कूल ! कैसे ?
-किताबें निकाल दूंगा ,भूरी को अंदर घुसा दूंगा ।किसी को पता भी नहीं लगेगा ।
-जब म्याऊँ -म्याऊँ करेगी बच्चू तो मैडम की वो डांट पड़ेगी --वो डांट पड़ेगी कि दिन में ही तारे नजर आने लगेंगे ।
-ओह तब मैं क्या करूं--!
-तुम स्कूल जाओ । भूरी तुम्हारे पीछे से डिग्गू के साथ खेलेगी । डिग्गू को भी तो एक साथी की जरूरत है । कुछ दिनों मेँ ही दोनों मेँ अच्छी पटने लगी।
उस  दिन चीकू बोला --तुम सारे दिन उछलकूद कर समय ख़राब करती रहती हो ।   स्कूल से आकर आज तुम्हें पढ़ा ऊंगा ।
-लेकिन खेलने -कूदने से तो मैं मोटी -ताजी होगई हूँ। दौड़ -दौड़ कर चूहे पकड़ सकती हूँ । भूरी बोली ।
-ऐसे मोटे -ताजे होने से क्या फायदा कि दिमाग में मच्छर ही मच्छर भर जाएँ और तुम्हें काटने लगें ।
-अरे बापरे --।वे तो मेरा सारा खून पी जाएंगे --- फिर मैं क्या करूँ !
-यही कि जो मैं पढ़ाऊँ उसे दिमाग में भर लो फिर मच्छर आएंगे ही नहीं ।
भूरी को मच्छरों से बहुत डर लगता था । उनसे बचने के लिए उसने पढ़ना शुरू कर दिया। वह बिल्लू की बातें बड़े ध्यान से सुनती ।
खेलने वाले साथी को किताबों में उलझा देख डिग्गू को बड़ा गुस्सा आया ।
-भूरी !यह क्या शुरू कर दिया। भूरी साहिबा बनना है क्या !बिल्ली है --बिल्ली ही बनी रह ,चोला न बदल ।

--डिग्गू ,कल से तुमको भी पढ़ना पड़ेगा । चीकू बोला ।
-मैं नहीं पढ़ूँगा । माँ कहती है -खेलोगे -कूदोगे बनोगे नबाब ।
-तेरा दिमाग तो बुद्धू का बक्सा है । सारा दिन खेलने से नबाब नहीं गँवार बनते हैं । पढ़ने से तुम जैसे बुद्धू को बुद्धि आयेगी वरना सब तुम्हें उल्लू बनाएँगे ।
-उल्लू ---मतलब मुझे दिन में दिखाई देना बंद हो जाएगा !---आधा अंधा हो जाऊंगा ---तब तो जरूर पढ़ूँगा ।
अब उसकी भी पढ़ाई शुरू हो गई । कुछ दिनों बाद उन्हें स्कूल में भर्ती कर दिया गया । परीक्षा के दिन आ गए । चीकू को चिंता सताने लगी । लगता था भूरी -डिग्गू की नहीं उसकी परीक्षा है ।
एक शाम चीकू उन दोनों को बाग में घूमाने ले गया । वहाँ एक पेड़ पर चिड़ा -चिड़ी बैठे थे ।
चिड़ी बोली -भूरी तो चतुर लगती है ,परीक्षा में जरूर पास हो जाएगी ।
-ठीक कहा तुमने मगर ,डिग्गू  शैतान है ,  पढ़ने मेँ मन ही नहीं लगता। । इसके पास होने मेँ शक है ।
भूरी तो अपनी प्रशंसा सुन हवा मेँ उड़ने लगी ।
सोचने लगी -बस हो गई बहुत पढ़ाई ,अब थोड़ा आराम करूंगी ।
डिग्गू का  मुंह लटक गया । वह खिलंदड़ी जरूर था पर फेल भी नहीं होना चाहता था । उसने कसम खाई --अगले पंद्रह दिनों मेँ वो मेहनत करूंगा --वो मेहनत करूंगा कि भूरी को पछाड़ न दिया तो मैं डिग्गू नहीं --।
इन पंद्रह दिनों मेँ क्या हुआ ,डिग्गू को कुछ पता नहीं । बस वह भला और उसकी किताब भली लेकिन भूरी --तौबा रे तौबा --कभी गुलाब से बतियाने लगती तो कभी धूप मेँ सो जाती ।
दोनों की परीक्षा खत्म हुई । रिजल्ट का इंतजार होने लगा ।
जिस दिन रिजल्ट निकला। सूरज भैया खूब चमचमाने लगे । लगता था बच्चों के पास होने की खुशी में वे भी खुश हो रहे हैं । भूरी --वह तो दिन चढ़े सोती रही और डिग्गू --उसका दिल करने लगा धुक ---धुक --। आवाज आने लगी पास होऊँगा या फेल ---पास होऊँगा या फेल । अकेले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था और स्कूल जाने को उतावला भी था ।
-भूरी ,उठ -उठ ---स्कूल रिजल्ट देखने चल ।
-मुझे सोने दे --मैं नहीं जाती ।
-न चल ,मैं तो जा रहा हूँ ।
-तू जाकर क्या करेगा !तेरा तो नाम ही नहीं होगा पास होने वालों की लिस्ट में ।
-तेरा तो होगा ।
-मेरा क्यों नहीं होगा !भूरी ताव में आ गई ।
-ठीक है तो तेरा ही देख आता हूँ ।
-हा ---हा ,जा जा देख आ ,मूर्ख कहीं का !
भूरी बकझक करके फिर सो गई ।
डिग्गू कूदता फाँदता ठीक ब्लैक बोर्ड के सामने जा डटा । पहली नजर में ही उसने अपना नाम देख लिया और उछल -उछल कर गाने लगा ---
मैं तो पास हो गया
पास हो गया
बुद्धू की लिस्ट से
नाम कट गया ।
डिग्गू , राजा बन गया
राजा बन गया ।
एकाएक उसे भूरी का ध्यान आया ----
--अरे पढ़ाकू बिल्ली का रिजल्ट तो देखा ही नहीं ।
पर यह क्या !एक बार ,दो बार नहीं पाँच -पाँच बार अपनी छोटी सी ,नाजुक सी गर्दन घुमाकर- उचकाकर लिस्ट देखी लेकिन भूरी का नाम दिखाई नहीं दिया तो नहीं ही दिखाई दिया ।
भूरी के फेल होने का उसे बहुत दुख हुआ ।उसकी खुशी आधी हो गई । मुरझाया चेहरा लिए घर में घुसा ।
-लौट आया रोता सा मुँह लिए ! कहती थी , न जा --न जा । मालूम था फेल हो जाएगा तो गया क्यों !भूरी घुर्राई ।
डिग्गू धीरे से बोला --भू--री --तेरा तो ब्लैकबोर्ड पर नाम ही नहीं है ।
-पागल हो गया है क्या !ऐसा हो ही नहीं सकता ।
शक का कीड़ा लेकिन उसके दिमाग में घुस गया था । भागी स्कूल की ओर । डिग्गू और चीकू भी उसके पीछे गए
तीन जनों की छ्ह आँखें कम से कम तीन बार ब्लैकबोर्ड पर घूमीं -फिसलीं पर भूरी के नाम से नहीं टकराईं । अब तो भूरी रोने लगी ।
चतुर चीकू ने इस पहेली को जल्दी ही सुलझा दिया ।
 -लगता है भूरी , चिड़ा-चिड़ी की बात सुनकर तुमने अपनी किताब 'अंगूठा चूस' के पढ़ने   पर ध्यान देना कम कर दिया था ।जब देखो --बड्डे  डोगी की पीठ पर आराम फरमाती हो  या   धूप सेकती रहती हो ।  पढ़ने वालों का पहला काम है किताब से प्यार करना । बिना पढ़े परीक्षा में कोई पास होता है क्या ! पहले काम फिर नाम ।
भूरी को अपनी गलती मालूम हो गई और यह भी समझ गई कि बुद्धू भी बुद्धिमान हो सकता है  ।




(छाया चित्रकार -सुधा भार्गव )

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