प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

दीपावली के शुभ अवसर पर कहानी (2014)

दो बहनें

दिवाली का दिन था ।


धन की देवी लक्ष्मी दरवाजे-दरवाजे जाकर सोच रही थी किसका दरवाजा खटखटाऊँ। एक दरवाजे पर उसे अपनी बहन सरस्वती खड़ी दिखाई दी।

-अरे हट –मेरा रास्ता छोड़। इतने दिनों से यहाँ पड़ी है पर सीधे -साधे मंगौड़ी मास्टर का कुछ भला भी न कर पाई।जो पूरे गाँव के बच्चों को बुद्धि बाँटता रहता है उसमें इतनी बुद्धि नहीं कि खुद कैसे सुख से रहे। आज के दिन भी बेचारे के पास दीपक जलाने को न घी है। न मेरा भोग लगाने को मिठाई।


मेरी तो छोड़ –देख उस बच्चे को देख !पुराने कपड़े पहने पटाखों ले लिए अपनी माँ के सामने गिड़गिड़ा रहा है। भई ,मेरे से तो इसका कष्ट देखा नहीं जाता।
-ठीक है बहन, स्वागत! मैं चली।
-हाँ –हाँ तू जा । वैसे भी जहां तू होती है वहाँ मेरी दाल नहीं गलती । देखना –कुछ ही दिनों में इसके घर में सुख ही सुख बरसने लगेगा। लक्ष्मी बोली।
लक्ष्मी ने मास्टर  के घर में डेरा डाल लिया। कुछ देर बाद ही उसके कई छात्र आन धमके । सबके हाथों में कोई न कोई उपहार था। किसी ने फुलझड़ी पटाखे दिए, तो कोई रंगबिरंगे सुंदर कपड़े लाया।  मिठाई- नमकीन के तो पैकिट ही पैकिट  थे। कीमती उपहारों को देख मंगौड़ी मास्टर चकित सा सोचने लगा –लड़कों के पास तो बहुत पैसा है। मुझ मूर्ख ने तो बड़ी रकम लिए बिना इन्हें पढ़ाकर बड़ी गलती की।
उसने अगले महीने से ही लड़कों से पढ़ाने के बदले नियम से धन लेना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में उसके घर में पैसा ही पैसा बरसने लगा ।

वह अच्छा खाता ,अच्छा पहनता। बेटे को फूलों की तरह पालने लगे। पर ज्यादा लाड़ -प्यार से बेटा बिगड़ने लगा।पढ़ने में उसका मन नहीं लगता। मास्टर की आँखें तो तब खुलीं जब उसका अपना ही बेटा कक्षा में फेल हो गया। दूसरों के बच्चों का भाग्य बनाने वाला अपने ही बच्चे का भाग्य न बना पाया। यह सोच सोचकर वह दुखी रहने लगा।

पत्नी घर देखने की बजाय अपनी साड़ी गहने पड़ोसियों को दिखाने में लग गई।अब न वह घर साफ करके रखती और न ठीक से खाना बनाती। मंगौड़ी यदि कुछ कहता तो लड़ने को तैयार हो जाती। बेटा भी झगड़ालू और जिद्दी हो गया। । घर में अशांति रहने लगी।
रोजाना की चख़चख़ और चारों तरफ फैली गंदगी से लक्ष्मी का जी मिचलाने लगा। वह दूसरे घर में जाने को बेचैन हो उठी।

दूसरे वर्ष दिवाली आई।  
लक्ष्मी सुस्त सी दरवाजे पर आन खड़ी हुई।  सरस्वती को देख ज़ोर से चिल्लाई –बहना जल्दी आ---। आकर मंगौड़ी मास्टर को सम्हाल। यह तो मुझे पहले भी दुखी सा लगता था और अब भी दुखी है।मैं तो इसे खुश न रख सकी।

यह सुनते ही विद्या की देवी सरस्वती ब्राहमन के दिमाग में प्रवेश कर गई। वह ठीक से सोचने समझने लगा ।उसने ब्राहमन को अपनी पत्नी से कहते सुना-- न जाने क्या भूत सवार हुआ था कि मैंने धन का पुजारी बनने का निश्चय कर लिया। ।उसी कारण बुराइयों के दलदल में फंस गया। मैं तो विद्या का पुजारी ही भला।

सरस्वती मंद -मंद मुसकराने लगी।

तीसरे वर्ष फिर दिवाली फिर आई।
सरस्वती दरवाजे पर खड़ी थी और उसकी आँखें लक्षमीमको खोज रही थीं। लक्ष्मी को आता देख चहक पड़ी-लक्ष्मी तुमको बिना देखे पूरा साल बीत गया। अंदर आओ न। आज तो दीवाली है मिलकर मनाएंगे।
-दुनिया से निराली बात !कभी हम साथ-साथ रहे हैं?

-कल की बात छोड़ो,आज की बात करो। हरएक को तुम्हारी जरूरत है।अब ब्राहमन के बेटे को ही देख लो उसको खेलने का बड़ा शौक है । कभी मिट्टी के ढेले को पैर से फुटबॉल की तरह लुढ़काएगा तो कभी पत्थर को उछलकर उसे गेंद की तरह। यदि इसको फुटबॉल मिल जाए तो वह एक अच्छा खिलाड़ी हो सकता है। पर खरीदे कैसे बिना पैसे के । कुछ दिन यहाँ रुक जाओ।
-बस भी करो । देख लिया मैंने यहाँ रुककर। मैं तो बड़े शौक से इसे धनवान बनाने आई थी पर मेरा गलत तरीके से यह परिवार इस्तेमाल करने लगा और दोष ब्राहमन मुझे देने लगा। अब तो मैं यहाँ बिलकुल नहीं रहूँगी।

-ठीक है जब तुम्हारा कोई अनादर करे तो चली जाना करो। फिर मैं भी तो हूँ तुम्हारे साथ। कोई तुम्हारा मूल्य नहीं समझेगा तो मैं उसे रास्ता दिखाऊँगी। तुम्हारे यहाँ रहने से मंगू की तकदीर पलट जाएगी। फिर हम दोनों तो दूसरों का भला ही चाहते है। लक्ष्मी एक पल रुकी ,फिर उसने अपनी बहन की ओर हाथ बढ़ा दिया।सरस्वती ने उसका हाथ कसकर  थाम लिया कि कहीं चंचला चल न दे।

चौथे वर्ष फिर दीवाली आई ।
इस वर्ष सरस्वती और लक्ष्मी दोनों मंगौड़ी मास्टर के दरवाजे पर खड़ी थी। उनको देख लोग चकित हो उठे और कहने लगे –इनका साथ साथ रहना बड़ा कठिन है और जिस घर में ये एकसाथ रहने लगें वहाँ तो दिन -रात चांदनी ही चांदनी छिटकी पड़ती है। मास्टर जी की तरह दिवाली हमारे जीवन में भी खुशियों की बारात लाए।     
   
 

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