निशानेबाज
एक गाँव में गेंदाराम रहता था |वह निशाना लगाने में बहुत चतुर था। सुबह उठते ही बहुत से पत्थर बटोर लेता और कुँए की तरफ गुलेल लेकर निकल जाता।
उस समय लड़कियां और औरतें कुएं से
पानी खींचकर घड़े भरतीं ,फिर उन्हें सिर पर उठाकर घर की ओर धीरे –धीरे कदम बढ़ातीं। गेंदाराम दूर से भरे घड़े पर
निशाना लगाकर उन्हें फोड़ देता और खिलखिलाता----
हा-हा हो गया छेद
फूट गया मटका
पानी टप-टपका
ज़ोर
से लगा झटका
हा - - हा - -हा !
गाँव वाले बड़े परेशान! सब उसे छेदाराम-छेदाराम कहकर चिढ़ाने लगे। चिढ़कर तो वह और भी तेजी से घड़े फोड़ता। बच्चे-बड़े पानी के लिए तरसने लगे।
उस गाँव में एक बार दाढ़ी वाले साधुबाबा आये |परेशान गांववाले उनके पैरों पर गिर
गये और चिल्लाये -“महाराज,बचाओ ---बचाओ --इस छेदीराम ने घड़ों में छेद कर- करके हमारा जीना हराम कर दिया है।”
“क्यों छेदीराम !क्यों सताते हो इन लोगों को ?”साधुबाबा ने पूछा।
“मेरा नाम छेदीराम नहीं गेंदाराम है। इन्होंने मेरा
नाम बिगाड़ दिया है। मैं भी गुस्से में आकर इनके घड़ों की शक्लें बिगाड़ देता हूँ।”
“तुम्हें जितना गुस्सा करना है करो ,जितने घड़े फोड़ने हैं फोड़ो
,पर एक शर्त है!”
“साधुबाबा ,आप तो बहुत
अच्छे हैं। घड़े फोड़ने को मना भी नहीं किया! आपकी हर शर्त मानने को तैयार हूँ।”
“सुनो,जितने घड़े तुम फोड़ोगे,उतने तुम्हें बाजार से खरीदने होंगे। फिर उन्हें
भरकर घर-घर पहुँचाओगे।”
“यह तो मेरा चुटकियों का काम है दीये तो
मुझे बनाने आते ही हैं घड़े भी बना लूंगा, फिर पानी भरने में क्या देर!वह इतराता हुआ बोला।”
अब तो वह पेड़ की ऊंची सी डाली पर बैठकर खूब
निशाना लगाता। रात घड़े बनाने में गुजर जाती और
दिन में उन्हें भर-भरकर घर-घर पहुँचाता रहता।
गाँव वाले बड़े खुश! पुराने घड़ों की जगह उन्हें नये घड़े मिलने लगे। औरतें
खुश! बिना मेहनत के पानी भरे घड़े उनके घर पहुँच रहे
थे। गेंदाराम भी खुश! निशानेबाजी के शौक को जी भरकर पूरा कर रहा था। पर उसका यह शौक कुछ
दिनों तक ही पूरा हो सका।
रात -दिन के जागने से और पानी की ठंडक ने
गेंदराम को बुखार ने आन दबोचा। घड़े बनाने से जो आमदनी होती थी वह कम होने लगी
क्योंकि बने-बनाए घड़े तो बाजार की जगह गांववालों के घरों में पहुँच जाते।
धीरे -धीरे घड़ों पर निशाना लगाना
उसका कम हो गया। एक दिन ऐसा आया जब न ही उसने किसी के घड़े पर निशाना लगाया और न छेदीलाल
कहने से चिढ़ा।
औरतें परेशान हो उठीं ---। “अरी बहना, इसे क्या हो गया है --न घड़े
फोड़ता है और न चिढ़ता है।हमें सारा पानी भरना पड़ रहा है। इस ढोया-ढाई से तो
हमारे कंधे दुखने लगे।”
“अब वह समझदार हो गया है।” एक औरत बोली।
गेंदाराम हँसकर
बोला –“सच में मैं समझदार हो गया हूँ।
अब न मैं अपने लिए गड्ढा खोदूंगा और न ही उसमें जाकर पड़ूँगा।”
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-11-2017) को
जवाब देंहटाएं"मुस्कुराती हुई ज़िन्दगी" (चर्चा अंक 2790"
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'