जादुई मटका
सुधा भार्गव
गर्मी
की छुट्टियाँ –सोने चांदी से दिन । कोई समुद्र देखने गया तो कोई पहाड़ी जगह। कोई
प्यारी नानी के घर उतरा तो कोई दादी माँ के आँगन में चहका। देखते ही देखते बच्चों
के हाथ से छुट्टियाँ रेत की तरह सरक गईं।काफी समय के बाद उमंग से भरे बच्चों ने
स्कूल में प्रवेश किया।
प्रधानाचार्य
बड़ी कुशलता से अनुशासन की डोर पकड़े हुए थी। कुछ शिक्षक- शिक्षिकाएँ प्रार्थना सभा
की ओर बढ़ चुके थे। पर कुछ ऐसी भी थी जो थकान चेहरे लिए बड़ी धीमी गति से पैर बढ़ा
रही थी। उनको बच्चे सिर दर्द लग रहे थे। जलपान की घंटी बजते ही सब अपनी क्लास
छोड़ चाय की चुसकियाँ लेने स्टाफ रूम की ओर
बढ़ गई। एक शैला मैडम ही थीं जो बच्चों के मध्य बैठी उनके सैर सपाटों का आनंद ले
रही थीं। छुट्टियों की यादों से बच्चों की जेबें भरी हुई थीं वे उन्हे खाली करना चाहते थे।
सो मासूमों की बातों का अंत न था।खिलंदड़ी बच्चा भी शांत भाव से टिफिन खाता हुआ
दूसरों की बातें सुन रहा था। मैडम बड़े धैर्य से सुनती हुई उनको खेल खेल में शिक्षाप्रद
बातें भी बताती जा रही थी। उनकी शिक्षण प्रणाली की सभी तारीफ करते थे। वर्ष का
सबसे अच्छा लड़का उन्हीं की कक्षा से चुना जाता था। लेकिन उनकी इस सफलता को देख कुछ
के सीने में ईर्ष्या की आग जलती। वे उसे
घमंडी और नकचढ़ी समझतीं और हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश में रहतीं। समझ न पातीं कि
तीन तीन बच्चों की पढ़ाई,घर का पूरा काम –फिर भी स्कूल के
काम में इतनी कुशल –यह सब शैला कैसे कर लेती है।
एक
दिन अपने बेटे के जनेऊ संस्कार के अवसर पर शैला ने विद्यालय की साथिनों को अपने घर
छोटी सी दावत पर बुलाया। उनको अपनी उलझन को सुलझाने का मौका मिल गया। शाम होते
होते वे शैला के घर जा पहुंची। चमचमाते उपहार –मुबारकबाद जैसे शब्दों की गूंज
सुनाई देने लगी। खानपान और क़हक़हों का दौर रुका तो साथिन मिताली ने पूछ ही
लिया-शैला ,एक बात बताओ-तुम एक दिन में सारे काम कैसे कर
लेती हो।तुम इतना व्यस्त रहती हो फिर भी तुम्हारा कोई काम हमने अधूरा न देखा न सुना।
“हाँ
शैला तुम्हें बताना ही पड़ेगा कि तुम्हारी सफलता का रहस्य क्या है। जरूर तुम कोई
जादू जानती हो।ममता भी चुप न रह सकी।“
शैला
मुस्कराई और बड़ी आत्मीयता से अपनी साथिन का हाथ पकड़ते हुए बोली-“बहन ,मैं तो जादू नहीं जानती पर मेरे पास एक जादुई मटका जरूर है। यह देखो--
कोने में बैठा- बैठा ड्राइंग रूम की हमेशा शोभा बढ़ता रहता है।”
सब एक
साथ मटके में झाँकने खड़ी हो गई।
“अरे
इसमें तो ईंट-पत्थर भरे हैं।”
“उनके
ऊपर दो मोती भी आलती -पालती मारे बैठे है।”
“इसमें
तो छोटे - छोटे कंकड़ बालू मे लिपटे सोए लगते है।इसमें जादू की क्या बात है?”
“उफ!मेरी
तो कुछ समझ में नहीं आया,जरा समझा कर बोलो। एक मिनट को समझ लो हम तुम्हारी छात्राएँ हैं और तुम
हमारी क्लास ले रही हो।”
इस बार
शैला कुछ गंभीर हो गई और बोली-“यदि हम छोटे छोटे कामों में अपना समय बिता दें तो
जीवन के महत्वपूर्ण काम कभी कर ही न पाएंगे।”
“लेकिन
छोटे छोटे काम तो करने ही पड़ते हैं।”
“हाँ
उनको मैं भी करती हूँ । बच्चों के साथ खेलना कूदना ,खाना बनाना,सफाई,दवा दारू । लेकिन जीवन का एक लक्ष्य भी होना
चाहिए । उसे निर्धारित कर धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ना चाहिए। मैं सुबह उठते ही हीरे
मोती की तरह अमूल्य कार्यों को करके इस मटके
में डाल देती हूँ। उसके बाद पत्थर समान कम जरूरी काम करने शुरू कर देती
हूँ। उनकी समाप्ति पर उन्हें भी इस मटके में डाल देती हूँ और घड़े को अच्छी तरह
हिलाती हूँ ताकि सब हिलमिल जाएँ पर आश्चर्य –महत्वपूर्ण कार्य आभायुक्त ही नजर आते
हैं। तदुपरान्त बालू समान कार्यों को भी निबटाकर इसी के अंदर धीरे से खिसका देती
हूँ। ये काम तलहटी में ही समा जाते हैं।
मुझे कभी ऊपर दिखाई ही नहीं देते। ।मेरे कहने का मतलब है कि साधारण कामों की कीमत रेत
समान ही होती है। उन पर पूरा समय गंवाना बुद्धिमानी नहीं।”
“तुम तो
शैल वाकई में बहुत व्यस्त रहती हो।”
“हाँ
रहती तो हूँ पर इतना भी नहीं जितना तुम समझ रही हो। मटके के पास जो मेज रखी है उस
पर तुम दो चाय के प्याले देख रही हो न !”
“हाँ है
तो ----पर वे क्यों रख छोड़े हैं?”
“इसलिए
कि दौड़ धूप की जिंदगी में अपने दोस्तों के लिए मेरे दिल में जगह हमेशा खाली है।
उनके साथ एक एक चाय का प्याला तो पी ही
सकती हूँ। अब बस बहुत हो गईं बातें । एक एक गरम चाय का प्याला और हो जाय। हम सब
प्यार का धुआँ उड़ाते उसकी चुसकियाँ लेंगे।”
शैला
चाय का प्रबंध करने रसोईघर की ओर चली गई। बहुत सी आँखें उसका पीछा कर रही थीं
जिनमें केवल प्रशंसा का भाव था। उसके प्रति उनकी सारी शिकायतें दफन हो चुकी थी।
प्रकाशित –हिन्दी साप्ताहिक समय किरण
सलूम्बर ,दिसंबर 2015
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-03-2019) को "गीत खुशी के गाते हैं" (चर्चा अंक-3283) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर कहानी।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअद्भुत लेख !
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जवाब देंहटाएंtechten