प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

शनिवार, 17 अगस्त 2019

बालकहानी



  केवटिया की कुदान
     सुधा भार्गव 
देवपुत्र अंक जुलाई 2019 में प्रकाशित 


       पानी बरसने से जंगल की मिट्टी भी खुशबू से भर गई थी। हरे –भरे पेड़ पर बैठे तोता -तोती खुशी से चहक रहे थे। उनका एक नाजुक सा बच्चा भी था जिसकी लाल चोंच बड़ी सुंदर थी। तोती ने उसे अपने पंखों से ढक रखा था ताकि लाडले को बरसाती हवा न लग जाए।   
       उस पेड़ के नीचे एक सांप का बिल था । उसमें पानी भर जाने से साँप का दम घुटने लगा । वह बिल से बाहर निकल आया और उस पेड़ पर चढ़ गया जहां तोता -तोती अपने बच्चे के साथ बड़े प्रेम से बैठे थे। साँप का स्वभाव बड़ा ही  खराब था । वह हमेशा दूसरों को तंग करने में लगा रहता। उनको  देख उसकी आँखों में चमक आ गई –आह ! बिना मेहनत के ही भोजन मिल गया। तीनों को एक बार में ही दबोच लूँगा।  तोता-तोती तो उसे देख तुरंत उड़कर दूसरे पेड़ की डाल पर बैठ गए।   पर नन्हा तोतू उड़ न पाया। उसके पंख तो ठीक से निकले भी न थे। साँप धीरे-धीरे उसकी ओर बढ्ने लगा और मासूम को दबोच लिया। वह उसकी मजबूत पकड़ से छुटकारा पाने के लिए छटपटाने लगा। तोता-तोती यह देख रोने लगे।
     “टें—टें—साँप भैया,तोतू ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है !उसे छोड़ दो।” तोती गिड़गिड़ाई ।
      “क्यों छोड़ दू अपने शिकार को! यह क्या कम है कि तुमको छोड़ दिया। ज्यादा चबड़ -चबड़ की तो एक ही छलांग में तुम्हारे पास पहुँचकर मिनटों में मसल दूंगा।”
      साँप की जहरीली बातें सुनकर बहुत से स्त्री –पुरुष ,लड़के –लड़कियां  उस पेड़ के नीचे जमा हो गए पर किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि नाग को भगा सके। वे तो डर के गुलाम थे कि कहीं  साँप उन्हें ही न डस ले।
      इतने में करीब दस बारह साल का केवटिया भागता आया और तेजी से पेड़ पर चढ़ने लगा। उसे देख लोग सकपका गए –इतनी कम उम्र और इतना साहस!
      “बेटा, तोते  के बच्चे को बचाने के लिए अपनी जान क्यों खोना चाहता हो? साँप बड़ा खतरनाक होता है। अगर उसने तुम्हें काट लिया तो बच न पाओगे।” एक आदमी ने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा।
      “काका! देखो---देखो ----ऊपर देखो! दूसरे पेड़ पर बैठे तोता- तोती की आँखें कैसी गीली है।जरूर इसके माँ -बापू होंगे। ठीक मेरी  माँ की तरह दुखी हैं। जरा सा मुझे बुखार होने पर वह भी तो टप—टप आँसू बहाने लगती है।”
       काका का हाथ झटक वह तो पेड़ पर वो चढ़ा ---वो चढ़ा और फुर्ती से साँप के मुँह से छोटे तोतू को खींच लिया। तोता -तोती तो  टें---टें कर खुशी से पंख फड़फड़ाने लगे। नीचे खड़े बच्चों ने भी तालियाँ बजाकर उनका साथ दिया । साँप इस बात के लिए तैयार न था कि उसके मुँह से उसका भोजन छीन लिया जाय । वह गुस्से से पागल हो गया। बालक को डसने के लिए अपने विष भरा  फन लहरा दिया। पर केवटिया भी  कम चुस्त न था।  तोतू को लेकर उससे पहले ही वह पेड़ से नीचे लंबी कुदान लगा बैठा । उसके घुटने छिल गए ,जगह जगह खून रिसने लगा पर तोतू को सुरक्षित देख विजयी मुस्कान उसके चेहरे पर छा गई।
समाप्त  




1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-08-2019) को "ऊधौ कहियो जाय" (चर्चा अंक- 3429) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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